कापुरुषता ही प्रकाशित होती है। इस प्रकार जिस उपाय के द्वारा वह दर्शकों के मन में विभ्रम उत्पन्न करके अपने काम को सहज बना लेता है वह उपाय चित्रकार से भीख माँग कर लाया हुआ है।
इसके अलावा जो दर्शक अभिनय देखने आया है उसके पास क्या अपनी पूँजी कुछ भी नहीं है? उसमें अपनी शक्ति क्या कुछ भी नहीं है? वह क्या निरा बच्चा है? विश्वास-पूर्वक क्या उस पर कोई भी बात छोड़ी नहीं जा सकती? यदि यह सत्य हो तो दूना दाम देने पर भी वैसे लोगों के हाथ अभिनय देखने का टिकट नहीं बेचना चाहिए।
यह तो अदालत में गवाही देना नहीं है जो प्रत्येक बात को शपथ-पूर्वक प्रमाणित करना पड़ेगा? जो विश्वास करने के लिए, आनन्द करने के लिए, आये हैं उनको ठगने के लिए इतनी बड़ी तैयारी की आवश्यकता ही क्या है? वे (दर्शक) अपनी कल्पनाशक्ति को घर पर ताले में बन्द करके नहीं आते। कुछ तुम समझाओ और कुछ वे स्वयं समझें। अभिनेता और दर्शकों में ऐसे ही समझौते का सम्बन्ध है।
वृक्ष की ओट में खड़े होकर दुष्यन्त सखियों के साथ शकुन्तला की बातचीत सुन रहे हैं। अच्छी बात है। वह बातचीत, कवि के शब्दों में, रस का रङ्ग खूब जमाकर कहते जाओ। उस समय मेरे सामने समूचे वृक्ष उपस्थित न रहने पर भी मैं उस बातचीत से वृक्षों का अनुमान कर ले सकता हूँ। इतनी सृजन-शक्ति––कल्पना-शक्ति––मुझमेँ है। दुष्यन्त-शकुन्तला और अनसूया-प्रियंवदा के चरित्र के अनुरूप हर एक हाव-भाव तथा उनके कण्ठस्वर के ढङ्ग आदि का