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मा है:।

लज्जा से प्राप्त हुई हो, चाहे प्रेम से प्राप्त हुई हो और चाहे धर्म के उत्साह से प्राप्त हुई हो।

वास्तव मेँ जत्था बाँध कर मरना सहज है। अकेले चिता की धधकती आग मेँ प्रवेश करने के समान वीरता युद्ध-क्षेत्र में बहुत कम पाई जाती है।

बंगाल की ही नहीं, किन्तु सारे भारत की प्राण देनेवाली उन पितामही-प्रपितामहियों को हम आज नमस्कार करने हैं। उन्होंने जिस जाति को दूध पिलाया है उसे स्वर्ग में जाकर नहीं भूल सकतीं। आर्यें, तुम अपनी सन्तानों को संसार के सब से बड़े भय की परीक्षा मेँ 'पास' कर दो। तुमने स्वप्न में भी ऐसा नहीं सोचा होगा कि तुम्हारी वीरता से संसार के बड़े बड़े वीर लज्जित हो रहे हैं। घर के काम-काज को समाप्त करके जिस प्रकार तुम शाम को चुपचाप पति के पलँग पर पैर रखती थीं उसी प्रकार पति को मृत्यु के दिन, अपने संसार-सुख के समाप्त होने पर, संसार से बिदा लेकर सोहागिन के वेश मेँ तुम सहज ही पति की चिता पर चढ़ी हो। मृत्यु को तुमने सुन्दर बना दिया है। तुमने उसे शुभ और पवित्र बनाया है। चिता को तुमने विवाह-शय्या की तरह आनन्दमय, कल्याणमय बना दिया है। इस देश में अग्नि तुम्हारे हो पवित्र जीवन की आहुति से पवित्र हुआ है। आज से हम लोग इस बात को कभी न भूलेंगे। यद्यपि हमारा इतिहास चुप है, तथापि हमारे घर-घर में अग्निदेव तुम्हारी वाणी सुना रहे हैं। तुम्हारा अक्षय और अमर स्मारक समझ कर उस अग्नि को–– तुम्हारे अन्तिम विवाह के ज्योतिःसूत्र से बने हुए उज्वल रेशमी