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लाइब्रेरी।

उन्हीं महापुरुषों का स्वर आज, हज़ारों वर्ष बीतने पर भी, हज़ारों भाषाओं के द्वारा इस लाइब्रेरी में प्रतिध्वनित हो रहा है।

क्या इस बंगाल प्रान्त से हमारे कहने की कोई बात नहीं है? क्या हम लोगों के पास मनुष्य-समाज से कहने योग्य कोई ख़बर नहीं है? जगत् के इस एक-तान संगीत के बीच क्या केवल बंगाल ही चुप रहेगा?

हमारे पैरों के पास अवस्थित यह समुद्र क्या हम लोगों से कुछ नहीं कह रहा है? क्या यह हमारी गङ्गा, हिमालय के शिखर से कैलाम का कोई गीत अपने साथ नहीं लातीं? तो क्या हम लोगों के सिर पर अनन्त नील आकाश नहीं है? वहाँ से अनन्त काल की सदा प्रकाशमयी नक्षत्र-लिपि को क्या किसी ने पोंछ डाला है?

प्रति दिन देश-विदेश से, भूत और वर्तमान काल से हमारे पास मनुष्य जाति के पत्र आते हैं। हम क्या उनके उत्तर में दो-चार चटकीले अँगरेज़ी के समाचार-पत्र लिख भेजेंगे? सब देश असीम काल के पट पर अपना अपना नाम अङ्कित कर रहे हैं। बङ्गालियों का नाम क्या केवल अर्ज़ी के दूसरे सफ़े पर ही लिखा रहेगा? आज जड़ भाग्य के साथ मनुष्य के आत्मा का संग्राम चल रहा है; सैनिकों को बुलाने के लिए पृथ्वी की हर एक दिशा में मारू बाजा बज उठा है; हम क्या केवल घर के छप्पर पर पड़े हुए कुम्हड़े लौकी के लिए मुक़द्दमा तथा अपील ही दायर करते रहेंगे!

बहुत दिनों तक चुप रहने से आज बंगाल का जी ऊब उठा है। उसको अपनी भाषा में एक बार अपनी बात कहने दो। बंगालियोँ का कण्ठ-स्वर मिलने से विश्व-संगीत और भी मधुर हो जायगा।