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लखनऊ की कब्र

इस के बाद सब मौरछल-वालियां भी रुखसत हुई और मेरी साथिन मुझे लिए हुई घूमती फिरती उसी कोठरी में आई, जिसमें उसने मुझे मर्द से औरत बनाया था।

वहां आकर उसने मुझे फिर से मर्द बनाया और एक इतर इस क़िस्म का सुघाया कि जिस के सूघते ही मैं बेहोश हो गया और दूसरे दिन जब मेरी आखें खुली तो मैने अपने तई उसी पुतलों वाली कोठरी में पाया।

अल्लाह ! यह कैफ़ियत देखकर मेरी अक़ल हैरान होगई और में अपने जो में यही समझने लगा कि जो कुछ मैने देखा, स्वाब के अलावे और कुछ न था, क्योंकि उसके बाद फिर कई दिनों तक मेरी मुलाकात उस अजीब औरत से नहीं हुई थी।