पृष्ठ:लखनउ की कब्र - किशोरीलाल गोस्वामी.pdf/८२

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लिये तुम मेरा कहना मानो और कुछ दिनों तक ख़ामोश होकर मेरे कहे मुताबिक इसी जगह आराम से रहो। मैं तुम्हें यकीन दिलाती हूं कि कि मुझसे तुम्हारी बुराई कभी न होगी, क्योंकि मैं तहेदिल से तुम्हारी भलाई चाहने वाली है।

सिर्फ तुम्हारी ही, वही--"
 

मैं इस खत को पढ़ कर बहुत ही चकराया और दिलही दिल में अपनी कार्रवाई पर निहायत शर्मिन्दा हुआ कि एक औरत मुझे किस तरह मनमाना नचा नचा रही है । लेकिन सिवाय चुप रहने के और चारा क्या था!

योद्दी दो तीन दिन बीतने पर मैंने एक नई चाल चली, यानी उसी माकूम औरत को मैने इस मज़मून का स्थत लिखा कि,--"लो... साहब मेरी आखिरी सलाम लो ! क्योंकि मैं इस तनहाई की तक लोफ से ऊक गया हूं इसलिये उन कोरियों में जाकर, जिनमें जाने के लिये तुमने मना किया है, अपनी जान देदेता हूं।"

इसका जवाब उस नाज़नी ने बड़े मजे का दिया। उसने लिखा कि.--'दोस्तमन ! यह तुमने बहुतही अच्छा किया कि अपने इरादे को ख़बर मुझे पहिले हो देदी । खैर, शौक से तुम उन कोठरियों में जाओ, क्योंकि वहाँ के ख़तरे मैने दूर कर दिए!”