पृष्ठ:लखनउ की कब्र - किशोरीलाल गोस्वामी.pdf/७४

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७२ . * लखनऊ की कुन * अपनी कोठरी में लौट आया और पुतले के हाथों में तलवारें देदीं। फिर मैने खाना खाया और पलंग पर पड़कर देर तक आराम किया। ... जब मेरो पाखें खुली तो मैने क्या देखा कि रात होगई है, एक ओर शमादान जलरही है, और गरमागरम खाना भी रक्खा हुआ है। लेकिन मुझे भूख न थी, क्योंकि दिन के वक्त बहुत ही लज़ीज़ खाना .. भरपेट मैने खा लिया था। और क्या देखा कि सिरहाने की तरफ तीन चार किस्से वगैरह की किताबें रक्खी हुई हैं और एक परचा भी उनके साथ है, जिसमें सिर्फ यही लिखा हुआ है कि,-" यह तुम्हारे दिलबहलाव के लिये हैं।". . यह तो मैं चाहता ही था कि कोई किताब मिल जाती तो मेरों तनहाई की हालत में कुछ आराम देती, पस, मैने शमादान को पलंग के पास एक तिपाई पर रख लिया और उन किताबों में से बहार दानिश' नामी किताब पढ़ने लगा। ...... .