पृष्ठ:लखनउ की कब्र - किशोरीलाल गोस्वामी.pdf/७१

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
  • शाहीमहलसरा * उतरने के लिये सीढ़ियां बनी हुई थी, लेकिन अंधेरा था। आखिरश, मैं डरते डरते उसमें उतर गया और दसडंडे सीढ़ियों के तय करनेपर जब मैं बराबर की ज़मीन में पहुंचा तो वह एक छोटी और अंधेरी कोउरी के अलावे और कुछ न जान पड़ी। मैंने धीरे २ चल फिर कर उसके हर तरफ दरवाज़े का पता लगाया.लेकिन उस अंधेरी कोठरी में किसी जानिब भी मुझे कोई दरवाज़े का निशान न मिला। लाचार, मैं ऊपर लौट आया और जिस तरह से मैने उस पुतले के दोनों पेच खोले थे, उसी तरह फिर कस दिए, जिससे वह सुरंगवाला पत्थर भी बराबर होगया। लेकिन तल्वार मैंने फिर उस पुतले के हाथ में न दी। . उसी तरह मैने पारी पारी से उन तीनों पुतलों के पेच भी खोले, जिनसे तीन वैसी ही सुरंगें और कोठरियां पैदा हुई, लेकिन नतीजा कुछ भी न निकला और मैं थक कर पलंग पर आबैठा। उस वक्त उस कोठरी में एक अजीव किस्म की मस्ती पैदा करने वाली खुशबू आरही थी, जिससे मस्त होकर मैं झूमने लगा और कुछ ही देर में पलंग पर गिर कर बेहोश होगया! .. .