पृष्ठ:लखनउ की कब्र - किशोरीलाल गोस्वामी.pdf/४३

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तो मैंने उसके हाथ को थाम लिया और कहा, "देखो बीवी ! इतनी नाराज़ न होवो और अगर तुम्हें मेरी मुहब्बत मंजूर नहीं है तो बराहे मेहरबानी इस कैद से तो मेरा छुटकारा करदो।" वह कहने लगी,-" ऐसा तो तभी हो सकता है, जब कि तुम मुझ से मुहब्बत करों और दिलाराम का खयाल अपने जी से बिलकुल भुला दो वरनः तामर्ग तुम इसी कैदखाने में पड़े पड़े सड़ा करोगे और यहां से ताज़ीस्त न छूट सकोगे।" यह सुनकर मैंने भी जोश में आकर कहा, तो खैर, ऐसा ही सही। मैं करोड़ों सदमें उठा कर अपनी जिन्दगी बर्बाद कर सकता है लेकिन दिलाराम की याद, या उसकी खोज नहीं छोड़ सकता और मिलने पर उसे हर्गिज अपने सीने से अलग न करूंगा।" - " तो तुम यहीं पड़े पड़े सड़ा करो।" यों कहकर वह बड़ी तेजी के साथ पोशीदः दरवाजा खोलकर वहां से चली गई और मैं अपने साथी, तरह तरह के खयालों का साथ देने के लिये मजबूर हुआ।