पृष्ठ:लखनउ की कब्र - किशोरीलाल गोस्वामी.pdf/४०

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लखनऊ का कुछ * बगैर दोस्तो पैदा किए, वह मुझे उस फैदखाने के बाहर कर कर सकती। इसके अलाके यह गो, लोडी थी, लेकिन उसकी खूबसूरती, "नजाकत, और यातें ऐसी थी, कि जिनसे यही बात जाहिर होतीथी .. कि यह औरत किसी अच्छे खान्दान की है और किसी सुसीबत में मुबतिला होने ही से लौंडो के दरजे को पहुंची है। ... गरज़ यह कि मैंने बातों ही बातो उस लौडी से खूय गहरी - दोस्तो पैदा करली और जब वह मुझसे फिर मिलने का वादा करके वहां से चली गई तो दिलही दिल में निहायत खुश हुश्रा और ऐसा समझने लगा कि अब अगर खुदा ने चाहा तो मैं बहुत जल्द इस बला से छुटकारा पाजाऊंगा। उसके जाने पर इन्हीं बातों को उधेड़ बुन में मैं देर तक लगा रहा और फिर मुझे नींद आ गई।