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*श्री*
उपोद्घात।

कलियुगपावनावतार, मर्यादापुरुषोत्तम, दशरथनन्दन, श्रीरामचन्द्रजी के छोटे भाई लक्ष्मणजी के अधिकार मुक्त होने से लक्ष्मणपुर नाम का भूभाग अवध के सूबेदार के समय से 'लखनऊ' कहलाया। भूगोल के नकशे में यह (लखनऊ, शहर गोमती नदी के दहिने किनारे पर २६०-५२। के मध्य स्थित है परन्तु अब कुछ भाग नदी के उत्तर का भी इसी में मिला लिया गया है।[१]

अवध की राजधानी लखनऊ, सौ वर्ष से अधिक हुए, नव्वाब आसिफुद्दौला के तख्त पर बैठने के समय से अधिक प्रसिद्ध हुआ। आज कल जहां पर यह नगर है, पहिले वहां पर ६४ गांव थे, जिनका कुछ २ पता अब उनके नाम पर बसे हुए कई महल्लों से लगता है और विशेष बात पुराने क़ागज़ात से जानी जा सकती है।

पहिले इस नगर में ब्राह्मणों और कायस्थों की घनी बस्ती थी, पर ११६० ई॰ में महमूद गज़नबी के भतीजे सय्यद सालार की फ़ौज के साथ शेख़ घराने के मुसलमानों ने आकर इस नगर में अपना पैर फैलाया और धीरे धीरे ये अवध में फैलते गए।


  1. कोई कोई लखनऊ नाम की उत्पत्ति लखना अहीर के नाम के कारण बतलाते हैं, जिस ने 'मच्छीभवन' नामक क़िला बनाया था, पर यह बात असंगत है; लखनऊ लक्ष्मणपुर (लखनपुर)का अपभ्रंश है। क्योंकि लखना (या लिक़्ना) मच्छीभवन के बनने के बहुत पहले से "लखनऊ" यह नाम प्रसिद्ध चला आता है।