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  • लखनऊ को कम * कमरे में टहलता घूमता जिन्दगी का मज़ा लूट रहा और बेगमसाहिवा के थाने का इन्तजार कर रहा था।

ज्योहों घड़ियावान ने नौ बजाए, कमरे के बाहर बंदूकों की: आवाज़ होने लगी और सब मोरछलवालियां वो मानेबजाने वालियाँ बठकर करीने से एक तरफ को खड़ी होगई, और यह बात मालूम हुई कि बेगमसाहिबा तशरीफ़ लाती हैं ! कुछ ही देर में कमरे के अन्दर बेगमसाहिबा ने कदम रक्खा। उनकी सजावट और बनाव वो खूबसूरती का बयान मेरी ताकृत : से बाहर है। वह पातेही तख्त पर बैठ गई और उनके साथ पाई हुई कई सौ औरतों में चालीस तो अगल बगल की कुर्सियों पर बैठों और बाकी करीने से फर्श पर बैठ गई। गानेवजानेवालियां, जो गिनती में पचास से कम न होगी, और जिनमें हरएक के हाथ में एक न एक बाजा था, तख्त से बीस पच्चीस हाथ की दूरी पर खड़ी होकर गानेबजाने वो नाचने लगी और मैं सबके साथ तख्त के पीछे जा खड़ा हुमा। . मैंने उन हूरों के मजमे में चारो तरफ नजर दौड़ा दौड़ा कर बहुत कुछ देखा, लेकिन उस अपनी मददगार नाज़नी को मैंने वहां पर न पाया। यह बात सुनकर शायद नाज़रीन मुझे झको समभंगे और यह कहेंगे कि इतने हजूम में तू एक औरत की शिनाख्त क्योंकर, कर सकता था। लेकिन नहीं, मेरी आँखों की बीनाई ने उस मजमे की हरएक औरत को परस्त्रलिया था और उनमें मेरी मददगार हगिज़न थी। अब तो गाने बजाने का बाजार गर्म हुआ और खूबसूरत औरतें ... नाचने वो माने बजाने लगी।