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दूसरी बार की विदेश-यात्रा ।


तो न सकी पर इशारे से उसने जताया, कि मेरे मरने में अब विलम्ब नहीं है, यह सब चेष्टा वृथा होगी। उसने अपने बेटे को देखने की इच्छा प्रकट की। धन्य माता का हृदय! आप मृत्यु के मुख में पड़ी थी तो भी सन्तान की एकमात्र चिन्ता उसके मन में थी। उसी रात को उस स्त्री का देहान्त हो गया। अपनी स्नेहमयी माता के यत्न से युवक उतनी बुरी हालत में न था, उसकी दशा कुछ अच्छी थी फिर भी वह बिछौने पर बेहोश पड़ा था। उसके मुँह में चमड़े के दस्ताने का एक टुकड़ा था, उसीको वह धीरे धीरे चबा रहा था। कई चम्मच झोल पीने पर उसने आँखें खोलीं। माता की अपेक्षा उसकी चेष्टा कुछ अच्छी थी, इसीसे वह बच गया। फिर दो-तीन चम्मच शोरवा पिलाने से उसने तुरन्त कै कर डाली।

तब हम लोगों ने दासी की शुश्रूषा की ओर ध्यान दिया। वह अपनी स्वामिनी के पास पड़ी थी। मृगी का चक्कर आने पर जो हालत शरीर की होती है वही हालत उसके शरीर की थी। एक हाथ से वह कुरसी के पाये को ऐसे ज़ोर से पकड़े थी कि उसे हम लोग सहज ही छुड़ा नहीं सके। उसकी दशा देख कर हम लोगों ने समझा कि वह मृत्यु की यन्त्रणा से व्याकुल हो रही है, फिर भी उसके बचने का कुछ कुछ लक्षण दिखाई देता था। वह बेचारी भूख से तो कष्ट पा ही रही थी, इसके ऊपर मृत्यु के भय से और आँखों के सामने अपनी स्वामिनी को निराहार के कारण मरते देख कर उसके हृदय में शोक का भारी धक्का लगा था। डाक्टर की चिकित्सा से वह बच तो गई, पर उसका स्वभाव उन्मादिनी का सा होगया।