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जीवन-वृत्तान्त के प्रथम अध्याय का उपसंहार।


हज़ार रुपया भेज दिया और पत्र लिखा कि फिर कुछ सहायतार्थ भेजूँगा। अपनी दोनों बहनों को भी डेढ़ डेढ़ हज़ार रुपया अर्थात् दोनों के बीच तीन हज़ार रुपया भेज दिया। उपकारी, सम्बन्धी तथा अनाथ असहायों को-जो कुछ मुझसे बन पड़ा सब को-मैंने यथायोग्य दिया, किन्तु ऐसी कोई जगह ढूँढ़ने से भी न मिली जहाँ मैं अपने सब रुपयों को निःशङ्क होकर रख सकता। कई परिचित व्यक्ति ऐसा न मिला जिसके हाथ इन रुपयों को सौंप कर निश्चिन्त हो जाता। वृद्ध पोर्चुगीज़ कप्तान और विधवा कप्तान-पत्नी यही दोनों व्यक्ति मेरे प्रति अत्यन्त दयालु थे और इन पर मेरा पूर्ण विश्वास था। किन्तु वे दोनों बहुत वृद्ध हो गये थे, इसलिए उनके पास जमा करने का साहस न होता था। आखिर मैंने आपना रुपया-पैसा बाँध कर इँगलेंड जाने ही का निश्चय किया। तत्काल ब्रेज़िल जाने की बात मुल्तवी रख कर ब्रेज़िलवासी मित्रों के कुशल-पत्र और उपहार भेज कर सब वस्तुओं के पाने की सूचना दे दी। इधर सुयोग पाकर चीनी और तम्बाक को बेंच डाला।



जीवन-वृतान्त के प्रथम अध्याय का उपसंहार

मैं अब किस मार्ग से इँगलैंड जाऊँ, यही सोचने लगा। यद्यपि जलपथ मेरे भाग्य में वैसा सुखदायी न था फिर भी विशेष रूप से परिचित और सह्य हो गया था। यह सब होने पर भी न मालूम इस दफ़े जल-पथ से जाने को जी क्यों नहीं चाहता था। मैं बार बार जल-थल के सुभीते की बात सोचने