देखने लगा। आखिर थोड़े ही दिनों में वह खासा नाविक हो गया। किन्तु मैं कम्पास का रहस्य उसे किसी तरह भी न समझा सका।
क्रूसो के घर में नवीन अभ्यागत
मेरे इस द्वीपान्तर-निवास का सत्ताइसवाँ साल शुरू हुआ। मैंने यथाशक्ति परमेश्वर की अर्चा पूजा कर के इस स्मरणीय दिन का उत्सव किया। इतने दिनों से जो उनकी अप्रमेय दया का परिचय पाया है तदर्थ उनके चरण-कमलों में अपनी हार्दिक कृतज्ञता निवेदन की। मेरे मन में न मालूम क्यों एक ऐसी धारणा जम गई थी कि मेरे उद्धार का दिन सन्निकट है। अब मुझे एक वर्ष भी बन्दी की अवस्था में रहना न होगा।
छुटकारे की आशा होने पर भी मैं पहले ही की तरह खेती और गृहकार्य में समय व्यतीत करता था। वर्षा ऋतु आई। अब बाहर जाने आने का अधिक सुयोग नहीं मिलता। मैंने अपनी नाव को समुद्र के किनारे रख दिया था। ज्वार आने पर हम दोनों नाव को खींच कर बहुत ऊपर ले गये और उसके नीचे एक बहुत बड़ा गढ़ा खोदा। ज्वार घट जाने पर गढ़े के मुँह को बाँध से बन्द कर दिया। इससे नाव गढ़े के भीतर ही पानी पर तैरती रही। अब समुद्र में उसके बह जाने का भय न रहा। वृष्टि का पानी रोकने के लिए उसके ऊपर डाल-पत्तों का एक छप्पर बना कर के रख दिया। यात्रा के लिए उपयोगी सब सामान ठीक ठाक कर के