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राजसिंह [ग्यारहवाँ लिए यही सबसे अच्छा अवसर है। फिर ऐसा अव- सर हमें नहीं मिलेगा। मन्त्रा दयालशाह-अन्नदाता, और कुछ न मिले, पर यह महा पापी तो मरे। राणा-मुगल साम्राज्य को योंही नहीं उखाड़ा जा सकता। हमें अपनी शक्ति पर भी विचार करना चाहिए। मन्त्री दयालशाह-परन्तु महाराज, इसी बात का क्या भरोसा है कि बादशाह सन्धि की शर्तों का पालन करेगा? वह बड़ा ही मैं ठग, बेइमान और पाजी है । ज्योंही खतरे से बाहर हुआ, संधि को फाड़ कर फेंकेगा। राणा-इन बातों को यों विचारने पर तो फिर सन्धि हो ही नहीं सकती । हमें उचित है कि इस सुयोग से हम लाभ उठा लें। हमारी शर्ते यह हैं-वह तुरन्त सेना सहित हमारे राज्य से बाहर चला जाय, और फिर कभी मेवाड़ पर चढ़ाई न करे । मेवाड़ में न गो-वध हो न देव मन्दिर तोड़े जाय ।न जजिया लिया जाय । सब-बहुत उत्तम । वह इन बातों को स्वीकार करे तो छोड़ दिया जाय। नहीं तो वहीं मरे। मेहता वहसिंह-(हाथ जोड़कर ) बेगमात जो कैद हैं उनका क्या होगा? मोहमतिह-वेन छोड़ी जायेंगी। कोई नौक में बुहारी