यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

दृश्य दूसरा अंक १२१ गुलाब-मैंने समझाया था रानी जी, पर वे निरन्तर तुम्हारी ही चिन्ता कर रहे हैं। रानी-छीः युद्ध काल में स्त्री की चिन्ता । गुलाब-वे प्रमाण चाहते हैं। रानी-कैसा प्रमाण ? गुलाब-जिसे पाकर वे आपकी ओर से निश्चित होकर शत्रु से लोहा ले सकें। रानी-(विचार कर ) ऐसा प्रमाण चाहते हैं ? गुलाब-हाँ, रानी, आपको उनकी द्विविधा दूर करनी होगी। रानी-(कुछ देर गम्भीर मनन करके) अच्छा, मैं तुम्हें प्रमाण देती हूं, उसे अपने स्वामी को देकर कहना कि यह हाड़ी रानी का प्रमाण है, अब निश्चित होकर शत्रु से युद्ध करें। गुलाब-जो आज्ञा रानी जी! रानी-ठाकुर तनिक सावधान हो। तुम्हारी तलवार कैसी है देखू? गुलाब-(कुछ डरकर तलवार देता हुआ) वह अति साधारण है रानी जी। रानी-फिर भी राजपूत की है। इसने बड़े-बड़े काम किये होंगे। क्यों ? तुम तो वीरवर के सेवक हो।