पृष्ठ:भाषा-विज्ञान.pdf/२१

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को व्याकमा के अर्थ में प्रयुक्त होता है, और दूसरे उतना अधिक रापरू नहीं है। इसे इतना अधिक व्यापक होना चाहिए जिससे गल, पोरनी व्याकरता और दूसरी और 'भापा-विज्ञान दोनों का उसमें ममावत की सके। एक नीमरा शब्द शिक्षा' है, जिसमें वर्ण, स्वर, मात्रा, यल यादि पर विचार किया जाता है। उणादि-सूत्रों में भी मोनी व्युत्पत्ति का विवेचन किया गया है। संस्कृत व्याकरण की वैधानिक प्रक्रिया पर ध्यान दिया जाय तो व्याकरण भी भाषा-विज्ञान का पर्याय हा नवना है। मंकत के व्याकरण में तुलना और इतिहास दोनों को न्यान मिला है। महाभाष्य देखने से यह स्पष्ट हो जाता है। उसमें भिन्न भिन्न देशों की भाषाओं नया विभाषाओं का उल्लेख मिलता पौर वेदनमा लोकी भाषाओं का इतिहास भी मिलता है। इन भागों में समाग तात्पर्य यही है कि प्राचीन काल में भारतीय विद्वानों कायान भी इन शाग्र की ओर अवश्य गया था। उसका बीज हमारे या गाया गया था और उमरी बीज की महायता से पाश्चात्य विद्वानों नाम जान को गृष्टि की । यद्यपि भाषा-विज्ञान अपने शुद्ध और र में प्राचीन समय में यहाँ उनना अधिक प्रावर न पा सका, समाधि माया र दमो यंग व्याकरण ने इस देश में बहुत अधिक निती। नाउन्ननि यहा नक परिपुणता को पहुंची कि आगे कुछ न को प्रवनर ही न रह गया । यह संभव है कि संस्कृत मार गच में देशीय बोलवाल की बोलियों को सफलतापूर्वक भवन प्रानान विद्वानों का एक मात्र उद्देश्य उसकी Tम पल की प्रानि के लिये प्राणपाण में नारनी मेधाति को प्रानुन म्प मे मंगानित करके SAFE भागीयामों में बाकी । इसका परिणाम rinानीय नि हो गया भी शासकीया. ना मनात हो गई। Mr में निन्य को जाना Rafri नाय नमें या शनि