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भाषा-विज्ञान पहला प्रकरण विषय-प्रवेश भाषा-विज्ञान उस शास्त्र को कहते हैं जिसमें भापामात्र के भिन्न भिन्न अंगों और स्वरूपों का विवेचन तथा निरूपण किया जाता है। शास्त्र की परिमापा मनुष्य किस प्रकार बोलता है, उसकी बोली का किस प्रकार विकास होता है, उसकी बोली और भाषा में कब, किस प्रकार और कैसे कैसे परिवर्तन होते हैं, किसी भापा में दूसरी भाषाओं के शब्द आदि किन किन नियमों के अधीन होकर मिलते हैं, कैसे तथा क्यों समय पाकर किसी भाषा का रूप और का और हो जाता है तथा कैसे एक भाषा परिवर्तित या विकसित होकर पूर्णतया स्वतंत्र एक दूसरी भाषा का रूप धारण कर लेती है-इन विपयों तथा इनसे संबंध रखनेवाले और सब उप-विपयों का भाषा- विज्ञान में समावेश होता है। इसमें शब्दों की उत्पत्ति, रूप-विकास तथा वाक्यों की बनावट आदि सभी पर विचार किया जाता है। सारांश यह कि भाषा-विज्ञान की सहायता से हम किसी भापा का वैज्ञानिक दृष्टि से विवेचन, अध्ययन और अनुशीलन करना सीखते हैं, और जब