यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

(७७)

गौतम का चित्त अनशन व्रत से हट गया और उन्होंने मिता- हारी होकर समाधि प्राप्त करने का संकल्प किया। पर वे करते तो क्या करते। उनके शरीर में इतनी शक्ति कहाँथी कि वे अपने स्थान से हिल डोल सकते ? उनके शरीर पर वस्त्र भी न थे, वे नितांत अपरिच्छद नग्न थे। यह सोच उन्हें पहले अपने परिच्छद की चिंता पड़ी। निदान वे अपने स्थान से किसी प्रकार उठे, पर उठते ही गिर पड़े और अपने पैरों के बल चलने में असमर्थ हुए। फिर वे बड़ी कठिनाई से हाथों के सहारे खिसकते हुए बड़ी देर में पास ही के एक श्मशान में गए । उस श्मशान में उन्हें किसी मुरदे का एक फटा पुराना टाट का टुकड़ा मिला, जिसे लोगों ने उसे जलाने के समय वहाँ फेंक दिया था। उसे उन्होंने उठा तो लिया, पर अब उसे धोने की चिंता पड़ी। थोड़ी देर वहाँ विश्राम कर उन्होंने फिर वहाँ से खिसकना प्रारंभ किया और धीरे धीरे कई जगह दम लेते हुए वे निरंजना नदी के किनारे पहुँचे। दैवयोग से वह घाट भी कुछ ऊँचा था। वे उतरने में कई जगह गिर भी पड़े। पर वे उन सब कठिनाइयों को मेलते हुए नदी में उतरे और येन केन प्रकारेण उन्होंने उस टाट के टुकड़े को एक पत्थर पर पछाड़ कर साफ किया। वहाँ उन्होंने निरंजना के विमल जल में स्नान कर उस टाट के टुकड़े की कोपीन लगाई और वहाँ से वे गाँव में मिक्षा के लिये गए। ___ गौतम जब गाव में गए, तव दैवयोग में जिस द्वार पर उन्होंने भिक्षा की प्रार्थना की, वह उन्हीं कन्याओं में से एक के घर का द्वार