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. उसके कुटुम्बियों के रोने की ओर गया। उन्होंने देखा कि एक मनुष्य को वस्त्र में लपेट खाट पर लेटा चार मनुष्य कंधे पर उठाए लिए जा रहे हैं और बहुत से लोग उसके साथ साथ रोते जा रहे हैं। इस दृश्य को देख कुमार ने कुतूहलवश सारथी से पूछा:-. किं सारथे पुरुष मंचोपरि-गृहीतो. सद्भुतकेश नखपांसु शिरे तिपति। परिचारयंति विहरंतस्ताडयते नानाविलापरचनानि उदीरयन्तिः ॥ हे सारथी-! इस पुरुष को कपड़े में लपेटकर खाट पर लेटा लोग क्यों उठाए लिए जाते हैं ? ये लोग क्यों अपने हाथों से अपना सिर पीटते हैं, सिर पर धूल डालते हैं तथा अपना वक्षस्थल पीटते हैं ? इसे कहाँ लिए जाते हैं और नाना प्रकार की बातें विलाप करते हुए क्यों कहते हैं ?. .. कुमार की यह बातें सुनकर सारथी ने हाथ जोड़कर उत्तर दिया- एषो हि देव पुरुषो मृत जंबुद्वीपे नहि.भूय मातृपित द्रक्ष्यति-पुत्रदाराम् । अपहाय भोगगृहमातृपितृज्ञातिसंघम् -परलोक प्राप्तु नहिं गत्यति-भूय ज्ञातिम्॥ ... देव-जंबुद्वीप में इसे मृत कहते हैं । यह फिर अपने पिता.माता पुत्र-स्त्री आदि को नहीं देख सकता--यह-पुरुष समस्त भोग, माता, पिता, जाति आदि-का-साथ छोड़कर : परलोक को प्राप्त हो गया