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(४३. ), ' .. आपके जाति-वंधु वच सकेंगे। सब प्राणियों को जरा. परास्त . करेगी । सब एक न एक दिन जराग्रस्त होंगे। जरा से कोई वच नहीं सकता। . सारथी की यह बात सुनकर कुमार के मन में, बड़ी ग्लानिः उत्पन्न हुई । उनका अंतःकरण वैराग्य से पूर्ण हो गया। उन्होंने मनुष्यों की इस अवस्या पर विचार किया कि लोग जानते हैं कि. हम एक दिन जराग्रस्त होंगे, पर फिर भी वे अपने यौवन पर इतराए फिरते हैं । सिद्धार्थ कुमार ने सारथी से कहा- धिक् सारथे अबुधवालजनस्य बुद्धि यद्यौवनेन मदमत्त जरां न पश्यी। श्रावतयास्विह रथं पुनरहं प्रवेक्ष्ये । किं महाक्रीडरतिभिर्नरयाश्रितस्य ॥ .. : सारथी ! धिक्कार है उस अवोध मनुष्य की बुद्धि को, जो जवानी के मद में इतराया फिरता है और जरा की ओर ध्यान नहीं देता । रथ घुमाओ, मैं इस मनुष्य को फिर ध्यानपूर्वक देखूगा । जब मैं भी जराग्रस्त होऊँगा, तब मुमो क्रीड़ा में रत होने से क्या काम ? 'सारथी ने कुमार की आज्ञा पा रथ घुमाया। कुमार रथ से उतर पड़े और बड़ी देर तक ध्यानपूर्वक उस बुड्ढे को देखते रहे । फिर रथ पर सवार होकर प्रासाद छो गए। ___ वे रात दिन यही सोचते रहे कि जब मनुष्य को बुढ़ापा अवश्य रेगा, तब बड़े शोक की बात है कि वह यौवनावस्था के मद में मत्त