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( ४० ) लोग अपने जीवन में समस्त संघटित घटनाओं को बड़े कुतूहल से देखते हैं, उनके कारण का अन्वेषण करते हैं और उनसे शिक्षा ग्रहण करते हैं । वे उनसे खयं लाभ उठाते हैं और अन्यों को लाभ उठाने का उपदेश करते हैं। वे साक्षात् कृतधर्मा होते हैं और हानि- कारक घटनाओं से बचने का उपाय ढूंढते हैं। वे स्वयं वचते हैं और औरों को बचाते हैं। सब मनुष्य अपने जीवन की घटनाओं से लाभ नहीं उठा सकते । उनके लिये ऐसे साक्षात्कृतधर्मा महर्षियों का उपदेश ही परम कल्याणकारी होता है। वैदिक काल के मह- पियों के उपदेश के विषय में महर्पि यास्काचार्य लिखते हैं- _ 'साक्षात्कृतधर्माणो ह ऋषयो बभूवुस्तेऽबेरभ्योऽसाक्षात्कृत- धर्मेभ्य उपदेशेन मंत्रान्संप्रादुः' वैदिक ऋषि साक्षात् कृतधर्मा थे। उन लोगों ने अन्यों के लिये जो साक्षात् कृतधर्मा नहीं थे, मंत्रों द्वारा उपदेश किया। सिद्धार्थ कुमार इसी कोटि के महात्मा थे और उनके जीवन में यह पहला दृश्य था जिसने उन्हें प्रभावित किया। वे बहुत देर तक ठकमारे से बैठे रहे और उनकै चित्त में नाना प्रकार की कल्प- नाएँ उत्पन्न हुई। वे सोचने लगे कि यह बुड्ढा क्यों मुक गया है। इसकी आँखों से क्यों स्पष्ट दिखाई नहीं देता ? इसके कान तो हैं, पर यह इतना चिल्लाने से सुनता क्यों नहीं ? इसे क्या हो गया ? किस कारण यह पुरुष इस अवस्था को प्राप्त हुआ ? और अंत को जब उन्हें कुछ स्पष्ट कारण का पता न चला, तब वे अपने सारथी से जिसका नाम छंदक था, बोले-