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यद्यपि अन्य शाक्य कुमार समाज ॐ योजनाओं में बड़ी उत्कंग दिखलाते और उसके लिये अनेक आयोजन करते और सम्मिलित होते थे, पर सिद्धार्थ कुमार वार बार प्रार्थना किए जाने परभी उनमें कभी नहीं जाते थे। उनका ध्यान सदा इसी लक्ष्य पर रहता था कि मैं कैसे संसार के दुःख का निदान और उसे निवृत्त करने का उपाय हूँ हूँ। वे अपनी इसी धुन में दिन रात लगे रहते न उन्हें खाने की सुधि थी न सोने की। वे नित्य एकांत में बैठे संसार के दुःख का निदान सोचा करते थे । वे सुख दुःख की कुछ परवाह नहीं करते थे। भरी हरि ने ठीक कहा है- क्वचिदभूमौ शय्या क्वचिदपि च पणेंक शयनम्, क्वचिच्छाकाहारी क्वचिदपि च मांसौदनरुचिः ।। क्वचित्कंथाधारी क्वचिदपि च पाटांवरधरः, - मनस्वी कार्यार्थी गणयति च दुःखं न च सुखम् ।। महाराज शुद्धोदन ने जब कुमार की यह दशा देखी तो उन्हें चिंता हुई कि ऐसा न हो कि कुमार इस वैराग्य की अवस्था में घर- क्लेशयन्धनयवाना प्रादुर्भूतः प्रमोचकः । अयं वं प्राप्यते धर्म वस्वगामोधयिष्यति ॥ ४ ॥ नराख्वाधिकिलियानां मादुर्भतोभिपरपर धर्य में प्राप्यते धर्म जतिकृत्यममोषकम् ॥ ५॥

  • माचीन काल में बड़े बड़े जलसे जिनमें लोग मलयुद्ध करते थे,

मा हामी जैसे धादि की लड़ाई होती थी यया कृत्रिम पद्ध[ Sham Fight ] कि जावा बा, समाज कहलाते थे। उनमें दर्शकों के के लिये उत्तम मंच [ Gallary ] बनते थे और उनके ' खान-पान धानोद-प्रमोद की सामग्री एकत्र को चावी.बी। ।