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बाजे से कुमार ने नगर में प्रवेश किया । कुमार के रहने के लिये राजा ने एक उत्तम आराम और प्रासाद नियत कर दिया। कुमार एकांतवास के बड़े ही प्रेमी थे। वे अपने आराम में सदा एकांत में त्रिविध दुःखों की निवृत्ति के उपाय की खोज में लगे रहते थे। वे बहुत कम आराम के बाहर निकाल करते थे। उस समय के राजा आजकल के राजाओं की तरह अपना सारा जीवन काम-भोग या आमोद-प्रमोद में नहीं व्यतीत करते थे। स्वयं महाराज जनक • कृषिकर्म करते थे। महाराज शुद्धोदन के यहाँ भी खेती होती थी। एक दिन की बात है कि सिद्धार्थ नगर के बाहर खेत देखने गए और वहाँ खेत के पास ही जामुन के एक पेड़ के नीचे एकांत देख ध्यान में मग्न हो बैठे। इस प्रकार चलते फिरते उठते बैठते वे सदा इसी चिंता में लगे रहते थे कि किस प्रकार मनुष्य त्रिविध तापों से छुटकारा प्राप्त कर सकता है । महात्मा कपिल का वाक्य 'अथ त्रिविधिदुःखादत्य- तनिवृत्तिरयंतपुरुषार्थः' उनके ध्यान में सदा अंकित रहता था। उनका चित्त सदा सांसारिक सुख-भोगों से उदासीन रहता था और + कहते हैं कि इस जामुन के पेड़ के नीचे कुमार ने चतुर्विध ध्यान की सिद्धि प्राप्त को यो जिसे देख पांच देववानों ने कुतूहसंश निम्नलिखित गाथाएं गाई बों;-- लोकहो शाग्निसंता प्रादु तोमयं हृद। अयं तं प्राप्यते धर्म बन्जगन्मोचविष्यति ॥१॥ प्रज्ञानतिमिरे लोके प्रादुर्भूतःप्रदीपकः । ..... अयं तं प्राप्यते धर्म यालगत्तारयिष्यति ॥२॥ शोकसागरकांतारे यानधमुपस्थितम् । अयं तं प्राप्यते धर्म यज्वगत्तारयिष्यति ॥ ३॥