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(५) समार्वतन और विवाह विद्याविवादरहिता, धृतशीलशिक्षा, . सराबता रहितमानमलापहाराः।. . . संसारदुःखदलनेन वभूषिता ये। - - धन्या नरा विहितकर्मपरोपकाराः। . . ' सिद्धार्थ पचीस वर्ष के हो गए। उनका विद्याध्ययनकाल समाप्त हो गया। पहले भी शास्त्र के नियमानुसार वे विद्यास्नातक हो सकते थे, पर उन्होंने अपना व्रतकाल वेदार्थ के चिंतन और मनन में गुरुकुल में ही विताया-. . क्रियाद्यनुष्ठानफलोर्थवोधः . . . स नोपजायेत विना विचारम् । अधीत्य वेदानथ तद्विचारम् चकार दुर्बोधतरो हि वेदः। महाराज शुद्धोदन बड़े गाजे बाजे के साथ विश्वामित्र जी के आश्रम पर गए और सिद्धार्थ कुमार का समावर्तन संस्कार करा उन्हें गुरुदक्षिण में बहुत सा धन, गो, हाथी, घोड़े आदि देकर बड़े आनंद से कपिलवस्तु ले आए। शाक्य प्रजा और राजरिवार कुमार को रूपविद्यासंपन्न देख बड़े आनंदित हुए और राजमार्ग अनेक प्रकार के ध्वजा-तोरण आदि से सुसज्जित किया गया। स्त्रियाँ अटारियों से उन पर पुष्प और खीलों की वृष्टि करने लगीं। इस प्रकार बड़े गाजे