पृष्ठ:बाल-शब्दसागर.pdf/२६

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अखरावट संज्ञा पुं० भूसी मिला हुआा जौ का श्राटा । अखरावट, अखरावटी - संज्ञा स्त्री० दे० "क्षरौटी " | अखरोट - संज्ञा पुं० एक फलदार ऊँचा पेड़ जो भूटान से अफ़ग़ानिस्तान तक होता है । अखाड़ा - संज्ञा पुं० १. कुश्ती लड़ने या कसरत करने के लिये बनाई हुई खूँटी जगह । २. साधु की सांप्रदायिक मंडली । जमायत । ३. तमाशा दिखानेवालों और गाने- बजानेवालों की मंडली । ४. सभा । दरबार 1 अखिल - वि० १. संपूर्ण । २. सर्व ग- पूर्ण । श्रखंड | अखीर - संज्ञा पुं० १. अंत । छोर । २. म अखूट - वि० जो न घटे या चुके । चक्षय | बहुत । श्रखैबर - संज्ञा पुं० अक्षयवट | श्रखोह -संज्ञा पुं०ऊँची-नीची या ऊभड़- खाबड़ भूमि । खोट ( १ जाते या चक्की के बीच खट की खूँटी । किल्ली । २. लकड़ी या लोहे का डंडा जिस पर गड़ारी घूमती है । अख्खाह ! - अव्य० उद्वेग या श्राश्वय- सूचक शब्द | अख्तियार - संज्ञा पुं० दे० "इखित- यारे" । श्रख्यान - संज्ञा पुं० दे० "आख्यान" । अग - वि० १. न चलनेवाला । स्थावर । २. टेढ़ा चलनेवाला । संज्ञा पुं० १. पेड़ । वृक्ष । २. पर्वत । ३. सूर्य्यं । ४. पि । 1 १८ गज - वि० पर्वत से उत्पन्न । संज्ञा पुं० १. शिलाजीत । २. हाथी । अगड़धत्ता - वि० १. लंबा-तरंगा । ऊँचा । २. श्रेष्ठ । अगड़बगड़ - वि० अंड बंड । संज्ञा पुं० १. बे सिर पैर की बात । प्रलाप । २. अंड बंड काम । अगड़ा | - संज्ञा पुं० अनाओं की बाल जिसमें से दाना झाड़ लिया गया हो । अगरण - संज्ञा पुं० छंदः शास्त्र में चार बुरे गण -- जगण, रगण, समय और तगण । श्रगणनीय - वि० १. न गिनने योग्य । सामान्य । २. अनगिनत । अगणित - वि० जिसकी गणना न हो । श्रगण्य - वि० १. न गिनने योग्य । २. सामान्य । तुच्छ । ३. असंख्य । बेशुमार | श्रगति-संज्ञा स्त्री० १. बुरी गति । दुर्दशा । खराबी । २. मृत्यु के पीछे की बुरी दशा । नरक । ३. स्थिरता । अगतिक - वि० जिसकी कहीं गति या ठिकाना न हो । प्रशरण । श्रगती - वि० [सं० अगति ] बुरी गति- वाला । पापी । + वि० स्त्री० श्रगाऊ । पेशगी । क्रि० वि० आगे से | पहले से । अगम - वि० [सं० अगम्य ] कोई जान सके । २. कठिन । ३. बुद्धि के परे । ४. अथाह । १. जहाँ विकट | दुर्बोध ।

  • संज्ञा पुं० दे० " श्रागम" । श्रगमन - क्रि० वि० श्रागे । पहले । श्रगमानी - संज्ञा पुं० श्रगुश्रा । नायक ।

सरदार | + संज्ञा स्त्री० दे० " अगवानी" |