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कालुक का बुक - संज्ञा स्त्री० कबूतरों का दरबा । काबुल -संज्ञा पुं० [वि० काबुली ]9. एक नदी जो अफ़ग़ानिस्तान से भा- कर अटक के पास सिंधु नदी में गिरती है । २. अफ़ग़ानिस्तान की राजधानी । काबुली - वि० काबुल का । संज्ञा पुं० काबुल का निवासी । काबू - संज्ञा पुं० वश । काम - संज्ञा पुं० [वि० कामुक, कामी] १. इच्छा । २. कामदेव । ३. सहवास या मैथुन की इच्छा । संज्ञा पुं० १. व्यापार । २. प्रयोजन । ३. नक्काशी । 1 कामकला - संज्ञा स्त्री० १. मैथुन । रति । २. कामदेव की स्त्री । कामकाजी - वि० काम करनेवाला । कामगार-संज्ञा पुं० दे० " कामदार" । काम चलाऊ - वि० जिससे किसी प्र- कार काम निकल सके। जो बहुत से अंशों में काम दे जाय । कामचारी - वि० १. जहाँ चाहे वहाँ बिश्चरनेवाला । २. कामुक । कामचोर - वि० आलसी । कामज - वि० वासना से उत्पन्न । कामजित - वि० काम को जीतनेवाला । संज्ञा पुं० महादेव । कामज्वर-संज्ञा पुं० एक प्रकार का ज्वर जो स्त्रियों और पुरुषों को प्रखंड ब्रह्मचर्य पालन करने से हो जाता है। कामड़िया - संज्ञा पुं० रामदेव के मत के अनुयायी चमार साधु । कामतरु- संज्ञा पुं० दे० " कल्पवृक्ष" । कामता - संज्ञा पुं० चित्रकूट । कामद - वि० [स्त्री० कामदा ] मनारथ पूरा करनेवाला । १५६ कामशास्त्र कामद मणि -संज्ञा पुं० चिंतामणि । कामदहन -संज्ञा पुं० कामदेव को जलानेवाले शिव । कामदा - संज्ञा स्त्री० कामधेनु । कामदार-संज्ञा पुं० धमला | वि० जिस पर कलावत आदि के बेल-बूटे बने हैं। । कामदुहा -संज्ञा स्त्री० कामधेनु । कामदेव - संज्ञा पुं० १. स्त्री-पुरुष के संयोग की प्रेरणा करनेवाला देवता । २. वीर्य 1 काम धाम - संज्ञा पुं० काम-काज । कामधेनु - संज्ञा स्त्री० पुराणानुसार एक गाय जिससे जो कुछ मांगा जाय, वही मिलता है । कामना -संज्ञा स्त्री० इच्छा । कामबाण - संज्ञा पुं० कामदेव के बाया, जो पचि हैं। कामयाब - वि० सफल । कामयाबी-संज्ञा स्त्री० सफलता । कामरिपु-संज्ञा पुं० शिव । कामरी -संज्ञा स्त्री० कमली । कामरू - संज्ञा पुं० दे० " कामरूप" | कामरूप - संज्ञा पुं० आसाम का एक जिला जहाँ कामाख्या देवी का स्थान हैं। कामल - संज्ञा पुं० कमल रोग । कामला- संज्ञा पुं० दे० "कामल" । कामली - संज्ञा स्त्री० कमली । कामवती - संज्ञा स्त्री० काम या संभोग की वासना रखनेवाली स्त्री । कामवान् - वि० [ खी० कामवती काम या संभोग की इच्छा करनेवाला । कामशर - संज्ञा पुं० दे० " कामबाण" । कामशास्त्र - संज्ञा पुं० वह विद्या या ग्रंथ जिसमें स्त्री-पुरुषों के परस्पर