पृष्ठ:बाल-शब्दसागर.pdf/१३७

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कंटोप कंटोप - संज्ञा पुं० एक प्रकार की टोपी जिससे सिर और कान ढके रहते हैं । कंठ-संज्ञा पुं० [ वि० कंठा ] १. गला । २. र्घाटी । ३. स्वर । कंठगत- वि० गल्ले में झाया हुआ कंठतालव्य - वि० जिसका उच्चारण कंठ और तालु स्थानों से मिलकर हा । कंठमाला - सज्ञा स्त्रो० गले का एक रोग जिसमें रोगी के गले में लगा- तार छोटी छोटी फुड़ियाँ निक- जती हैं । कंठस्थ - वि० जुबानी | कंठा - सज्ञा पु० [स्त्री० अल्पा० कंठी ] गले का एक गहना जिसमें बड़े बड़े मनके होते हैं । कंठाग्र - वि० कंठस्थ | । कंठी-सशास्त्री छोटी गुरियों का कंठा । कंठ्य - वि० गले से उत्पन्न । कंडा - संज्ञा पुं० [स्त्री० अल्पा० कंडी ] सूखा गोबर जो ईंधन के काम में श्राता 1 कंडाल - संज्ञा पुं० नरसिंहा | संज्ञा पुं० लेाहं, पीतल आदि का बड़ा गहरा बरतन जिसमें पानी रखते हैं कंडी - संज्ञा स्त्री० १. छोटा कंडा । २. गोहरी । 1 कंडील -संज्ञा स्त्री० मिट्टी, अबरक या काग़ज़ की बनी हुई लालटेन जिसका मुँह ऊपर होता है। कंडु - संज्ञा स्त्री० खुजली । कंडारा -संज्ञा पुं० वह स्थान जहाँ कंडा पाथा या रखा जाय । कंत -संज्ञा पुं० दे० "कांत" । कथा - संज्ञा स्त्री० गुदड़ी । कथड़ी | कंथी-संज्ञा पुं० गुदड़ीवाला | साधु | कंद - संज्ञा पुं० वह जड़ जो गुवेदार १२६ कंपास और बिना रेशे की हो; से सूरन, शकरकंद इत्यादि । कंदन - सज्ञा पुं० नाश । ध्वंस | कंदरा - सज्ञा स्त्री० गुफा । कंदर्प - संज्ञा पुं० कामदेव | कंदा-स -संज्ञा पुं० दे० " कंद" । कंदील - संज्ञा स्त्री० दे० "कंडील" । कंदुक - सज्ञा पुं० १. गेंद । २. गोख तकिया । ३. सुपारी । कुँदैला - वि० उदला । कटारा - संज्ञा पु० करधनी । कंध-संज्ञा पुं० १. डाली । २. दे० "कंधा” । कंधनी - संज्ञा स्त्री० करधनी । कंधा - सज्ञा पु० मनुष्य के शरीर का वह भाग जो गले और मोढ़े के बीच में होता है। कधावर - संज्ञा स्त्री० १. जूए का वह भाग जो बैल के कंधे के ऊपर रहता है । २. वह चद्दर या दुपट्टा जो कंधे पर डाला जाता है । कंप-संज्ञा पुं० कपिना । संज्ञा पुं० पड़ाव | कँपकँपी- -संज्ञा स्त्री० थरथराहट । कंपन - संज्ञा पुं० [वि० कपित] काँपना | कँपना- क्रि० प्र० डोलना । काँपना । कंपमान् - वि० दे० " " कंपायमान" 1 कंपा- संज्ञा पुं० बाँस की पतली तीलियाँ जिनमें बहेलिए लासा लगा- कर चिड़ियों को फँसाते हैं । कपाना - क्रि०स०१. हिलाना ह २. भय दिखाना । कंपायमान- वि० हिलता हुआ । कंपास - संज्ञा पुं० एक यंत्र जिससे दिशाओं का ज्ञान होता है । -हुलाना ।