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पुरातत्व-प्रसङ्ग

हमारी इस कूपमण्डूकता ने हमारी जो हानि की है उसकी इयत्ता नहीं। उसके कुफल हम पद पद पर भोग रहे हैं। उसने हमें किसी काम का नहीं रक्खा। परन्तु दुर्देव हमें फिर भी सचेत नहीं होने देता। उसने हमें यहाँ तक अन्धा बना दिया है कि हम अपने पूर्व पुरुषों के चारेत और उनके दृष्टान्त भी भूल गये है। हमारे जिन धर्म्मधरीण प्राचीन ऋषियों और मुनियों ने द्वीपान्तरों तक में जाकर आर्य्यों के धर्म, ज्ञान और ऐश्वर्य की पताका फहराई और बड़े बड़े उपनिवेशों तक की स्थापना कर दी उनकी चरितावली आज भी हमें अपनी पुरानी पोथियों में लिखी मिलती है। परन्तु उनकी ओर किसी का ध्यान ही नहीं जाता, उनके कार्य्यों का अनुसरण करना तो दूर की बात है।

"रूपम" नाम का एक सामयिक पत्र अंगरेज़ी में निकलता है। उसमें बड़े ही महत्त्व के लेख और चिन्न प्रकाशित होते हैं। उसमें ओ० सी० गांगुली नाम के एक महाशय ने एक लेख अगस्त्य-ऋषि के सम्बन्ध में प्रकाशित कराया है। यही लेख कविवर रवीन्द्रनाथ ठाकुर की विश्वभारती नामक पत्रिका के गत जुलाई महीने के अंक में उद्धृत हुभा है। उस लेख में यह लिखा गया है कि हमारे प्रसिद्ध और प्राचीन अगस्त्य मुनि ने कम्बोडिया ही में नहीं, सुमात्रा, जावा भौर बोर्नियो