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प्राचीन हिन्दुओं की समुद्र-यात्रा


किनारे को भूमि में घर बनाकर वहीं रहने लगी। परन्तु दीपवंश नामक ग्रन्थ में लिखा है कि यह एक टापू में उतरी थी जिसका नाम, पोछे से, नारीपुर हो गया था। पादरी टी० फोक्स साहब कहते हैं कि इन ऐतिहासिक कथाओं से पता लगता है कि बुद्ध के जमाने में हिन्दु- स्तान और फारिस के बीच के समुद्र में जहाज चलते थे।

विनयपीठक में लिखा है कि पूर्ण नाम के एक हिन्दू व्यापारी ने छः दफे समुद्र-यात्रा की थी। सातवीं दके यात्रा करते समय श्रावस्ती के कुछ बौद्धों के द्वारा वह बौद्ध बनाया गया था। सूत्रपीठक में भी दूरवर्ती टापुओं को जहाज द्वारा जाने का जिक्र है। समयुक्त- निकाय और अंगुतर-निकाय नामक ग्रन्थों में लगातार . छः महीने तक जहाज पर यात्रा करने का जिक्र है। दीघनिकाय में तो समुद्र-यात्रा-विषयक बड़ी हो मनोरक्षक बातें पाई जाती हैं। उसमें लिखा है कि जब व्यापारी लोग समुद्र के रास्ते व्यापार करने जाते थे, तब वे अपने जहाजों पर कुछ चिड़ियाँ भी रख लेते थे, जिस समय जहाज बीच समुद्र में पहुँचता था और वहाँ से भूमि न देख पड़ती थी उस समय, यह जानने के लिए, कि भूमि किस तरफ है, व्यापारी लोग चिड़ियों को छोड़ देते थे। यदि भूमि निकट न होती थी तो चिड़ियाँ