डाक्टर बर्जेस का कथन है कि यह बन्दरगाह वर्तमान बेसीन
नगर के पास था। अन्त में राजकुमार विजय लङ्का
पहुँचे और यहाँ उन्होंने एक बड़े ही शक्तिशाली राजवंश
की नींव डाली। लङ्का में उनकी स्थिति दृढ़ हो जाने
पर विजय ने पाण्ड्य-देश के राजा के पास बहुत से
जवाहरात, बतौर भेट के, भेजे। इस पर पाण्ड्य-नरेश ने
एक राजकुमारी और सात सौ परिचारिकायें महाराज
विजय को नजर की। उनको विजय और उसके साथियों
ने क्रम से आपस में बाँट लिया और उनके साथ विवाह
कर लिया। टर्नर साहब के द्वारा सम्पादित महावंश में
लिखा है कि जिस जहाज पर पाण्ड्य-राजकुमारी
लङ्का को लाई गई थी वह बहुत बड़ा था। उसमें १८
राजकर्मचारियों, ७० नौकर-चाकरो, बहुत से गुलामो,
स्ययं राजकुमारी और उसकी ७०० परिचारिकाओं के
रहने के लिए काफी जगह थी। विजय के कोई सन्तान
न थी। इस कारण उसके मरने पर उसका भतीजा
सागल-नगर से जहाज पर चढ़ कर लङ्का गया और
विजय की जगह पर राज्य करने लगा। कुछ दिनों बाद
उसके ६ भाई और उसको स्त्री, ये लोग भी लङ्का चले
गये और वहीं रहने लगे। महापंश के अनुसार गङ्गा के
मुहाने से चला हुमा जहाज बारह दिन बाद लङ्का
पहुँचता था।
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प्राचीन हिन्दुओं की समुद्र-यात्रा