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प्राचीन हिन्दुओं की समुद्र-यात्रा

इनमें से पहले श्लोकखण्ड में समुद्र के द्वीपों के पहाड़ों और नगरों का और दूसरे में कोषकारों की भूमि का उल्लेख है। कोषकारों की भूमि से मतलब वर्तमान चीन से है। तीसरे में यवद्वीप और सुवर्ण-द्वीप का नाम आया है । उन्हें आज-कल जावा और सुमात्रा टापू कहते हैं। चौथे में रक्त सागर का उल्लेख है। वही वर्तमान लाल समुद्र (Red Sea) है। रामायण के अयोध्याकाण्ड में एक श्लोक* है, जिसमें जलयुद्ध की तैयारी का इशारा है। इससे मालूम होता है कि उस समय के लोग जङ्गी जहाज़ बनाना और समुद्र में युद्ध करना अच्छी तरह जानते थे। इसके सिवा रामायण में उन व्यापारियो का भी जिक्र है जो समुद्र-पार के देशों में जाकर व्यापार करते और वहाँ से अपने राजा को भेंट करने के लिए अच्छी अच्छी चीजें लाते थे।

महाभारत में भी कितने ही श्लोक भारतवर्ष तथा अन्य देशों के परस्पर सम्बन्धः को प्रकट करते हैं। अर्जुन के दिग्विजय और राजसूय यज्ञ के प्रसङ्ग में ऐसे कितने ही देशों के नाम आये हैं जो हिन्दुस्तान से बहुत दूर स्थित हैं। उस समय इस देश से उनका घनिष्ठ सम्बन्ध था

*नावां शतानां पञ्चानां कैवर्तीनां शतं शतम्।
सन्नद्धानां तथा यूनान्तिष्ठन्तीत्यभ्यचोदयत्॥