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पुरातत्व-प्रसङ्ग


शासन क्यों स्वीकार करें ? संसार मे गोरों को धींगा- धींगी चलती जरूर है, पर सदा भौर सर्वत्र नहीं।

सकालवा लोग कोई छः हाथ लम्बा और ढेढ़ हाथ चौड़ा कपड़ा कमर में लपेटते हैं। स्त्रियाँ भी ऐसा ही करती हैं। स्त्री-पुरुष दोनों ही एक सा पत्र व्यवहार करते हैं। याद रहे, इन लोगों ने अपने राजे अलग बना रक्खे है। मलय-वंशी जाति के आदमियों के राजा को वे अपना राजा नहीं मानते। इनके राजा लाल रंग के कपड़े पहनते हैं। रानियाँ भी इसी रंग के कपड़ों से अपने शरीर की सुन्दरता बढ़ाती हैं। जब ये घूमने निकलती हैं तब इनके सिर पर लाल ही रंग का एक छत्र लगाया या मुकुट रक्खा जाता है। मार्ग में लोग झुक झुक कर उन्हें प्रणाम करते और आशीर्वाद देते है-- "चिरजीवी रहे सदा रानी हमारी"।

स्त्रियाँ अपने बाल बहुत कम बाँधती या गूंथती है। बात यह है कि यह काम बड़े परिश्रम और बड़े कष्ट का समझा जाता है। तीन तीन चार चार घण्टे की लगातार मिहनत से कही एक स्त्री के बाल सँवारे, गूंथे और बाँधे जा सकते हैं। इतना झंझट करे कौन ? वर्ष छ: महीने बाद कभी, हमारी होली दिवाली के त्योहार की तरह, इनके केश-प्रसाधन का त्योहार भी मना लिया जाता है। स्त्रियाँ, प्रसाधन के समप, अपने सिर