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मन्त्र


चले आ रहे थे--चड्ढा बाबू का घर उजड़ गया, यही तो एक लड़का था। भगत के कान में यह आवाज़ पड़ी। उसकी चाल और भी तेज़ हो गई। थकन के मारे पाँव न उठते थे। शिरोभाग इतना बढ़ा जाता था मानो अब मुँह के बल गिर पड़ेगा। इस तरह वह कोई १० मिनट चला होगा कि डाक्टर साहब का बँगला नजर आया। बिजली की बत्तियाँ जल रही थीं ; मगर सन्नाटा छाया हुआ था। रोने-पीटने की आवाज़ भी न आती थी। भगत का कलेजा धक-धक करने लगा। कहीं मुझे बहुत देर तो नहीं हो गई। वह दौड़ने लगा। अपनी उम्र में वह इतना तेज कभी न दौड़ा था। बस, यही मालूम होता था मानो उसके पीछे मौत दौड़ी आ रही है।

दो बज गये थे। मेहमान बिदा हो गये थे। रोनेवालों में केवल आकाश के तारे रह गये थे। और सभी रो-रोकर थक गये थे। बड़ी उत्सुकता के साथ लोग रह-रहकर आकाश की ओर देखते थे कि किसी तरह सुबह हो और लाश गंगा की गोद में दी जाय।

सहसा भगत ने द्वार पर पहुँचकर आवाज़ दी। डाक्टर साहब समझे कोई मरीज़ आया होगा। किसी

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