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ज़िहाद


धर्मदास ही पर पड़े। कायर ! निर्लज्ज ! प्राणों के लिए धर्म त्याग दिया ! ऐसी बेहयाई की ज़िन्दगी से मर जाना कहीं अच्छा है। क्या सोचते हो ? क्या तुम्हारे हाथ-पाँव भी फूल गये ? लाओ बन्दूक मुझे दे दो। मैं इस कायर को अपने हाथों से मारूँगी।

खज़ाँ०--मुझे तो विश्वास नहीं होता कि धर्मदास...

श्यामा--तुम्हें कभी विश्वास न आवेगा। लाओ बन्दूक़ मुझे दे दो। खड़े ताकते हो। क्या जब वे सिर पर आ जायँगे तब बन्दूक चलाओगे ? क्या तुम्हें भी यही मंज़र है कि मुसलमान होकर जान बचाओ ? अच्छी बात है, जाओ श्यामा अपनी रक्षा आप कर सकती है। मगर उसे अब मुँह न दिखाना।

खज़ाँचन्द ने बन्दूक चलाई। एक सवार की पगड़ी को उड़ाती हुई गोली निकल गई। जेहादियों ने 'अल्लाहो- अकबर !' की हाँक लगाई। दूसरी गोली चली और एक घोड़े की छाती पर बैठी। घोड़ा वहीं गिर पड़ा। जेहादियों ने फिर 'अल्लाहो अकबर !' की सदा लगाई और आगे बढ़े। तीसरी गोली आई। एक पठान लोट गया। पर इसके पहले कि चौथी गोली छूटे, पठान खजाँचन्द के सिर पर पहुँच गये और बन्दूक उसके हाथ से छीन ली।

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