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स्तीफ़ा


चन्द की सारी सम्पत्ति धर्मदास के रूप-वैभव के आगे तुच्छ थी। परोक्ष ही नहीं, प्रत्यक्ष रूप से भी श्यामा कई बार ख़जाँचन्द को हताश कर चुकी थी, पर वह अभागा निराश होकर भी न-जाने क्यों उस पर प्राण देता था। तीनों एक ही बस्ती के रहनेवाले, एक साथ खेलनेवाले थे। श्यामा के माता-पिता पहले ही मर चुके थे। उसकी बुआ ने उसका पालन-पोषण किया था। अब भी वह बुआ ही के साथ रहती थी। उसकी अभिलाषा थी कि ख़जाँचन्द उसका दामाद हो, श्यामा सुख से रहे और उसे भी जीवन के अन्तिम दिनों के लिए कुछ सहारा हो जाय। लेकिन श्यामा धर्मदास पर रीझी हुई थी। उसे क्या खबर थी कि जिस व्यक्ति को वह पैरों से ठुकरा रही है, वही उसका एक मात्र अवलम्ब है। ख़जाँचन्द ही वृद्धा का मुनीम, खजांची, कारिन्दा सब कुछ था, और यह जानते हुए भी कि श्यामा उसे इस जीवन में नहीं मिल सकती। उसके धन का यह उपयोग न होता, तो वह शायद अब तक उसे लुटाकर फकीर हो जाता।

धर्मदास पानी लेकर लौट ही रहा था कि उसे पश्चिम की ओर से कई आदमी घोड़ों पर सवार आते दिखाई

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