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कलमदान निकाला और मेरी मां को देकर कहा, "इसे अपने पास हिफाजत से रखियो और जब तक मैं इस दुनिया में कायम रहूँ इसे कभी मत खोलियो। देख इस कलमदान के ऊपर तीन तस्वीरें बनी हुई हैं। बिचली तस्वीर के नीचे इन्दिरा का नाम लिखा हुआ है। जब तेरा पति इस कलमदान के अन्दर का हाल पूछे तो कह दीजियो कि मेरे पिता ने यह कलमदान इन्दिरा को दिया है और इस पर उसका नाम भी लिख दिया है तथा ताकीद कर दी है कि जब तक इन्दिरा की शादी न हो जाय यह कलमदान खोला न जाय अस्तु जिस तरह हो यह कलमदान खुलने न पाये यह तकलीफ तुझे ज्यादे दिन तक भोगनी न पड़ेगी क्योंकि मेरी जिन्दगी का अब कोई ठिकाना नहीं रहा। मैं इस समय खूंखार दुश्मनों से घिरा हुआ हूं, नहीं कह सकता कि आज मरूं या कल, मगर तू मेरे मरने का अच्छी तरह से निश्चय कर लीजियो तब इस कलमदान को खोलियो इसकी ताली मैं तुझे नहीं देता, जब इसके खोलने का समय आवे तब जिस तरह हो सके खोल डालियो।" इतना कहकर मेरे नाना वहाँ से चले गए और रोती हुई मेरी मां को उसी तरह छोड़ गए।

इन्द्र—मैं समझता हूँ कि यह वही कलमदान था जो कृष्णा जिन्न ने महाराज के सामने पेश किया था और जिसका हाल अभी तुम्हारे सामने भाई साहब ने बयान किया है।

इन्दिरा—जी हां।

इन्द्र—निःसन्देह यह अनूठा किस्सा है, अच्छा तब क्या हुआ?

इन्दिरा—घंटे भर तक मेरी मां तरह-तरह की बातें सोचती और रोती रही। इसके बाद दामोदरसिंह पुनः इस कमरे में आये और मेरी मां को रोती हुई देखकर बोले, "सर्यू, तू अभी तक बैठी रो रही है। अरी बेटी, तुझे तो अब अपने प्यारे बाप के लिए जन्म भर रोना है। इस समय तू अपने दिल को सम्हाल और जाने की शीघ्र तैयारी कर, अगर तू विलम्ब करेगी तो मुझे बड़ा कष्ट होगा और मुझे कष्ट देना तेरा धर्म नहीं है। बस अब अपने को सम्हाल। हां मैं एक दफे पुनः तुझसे पूछता हूँ कि उस कलमदान के विषय में जो मैंने कहा है तू वैसा ही करेगी ना इसके जवाब में मेरी मां ने सिसककर कहा, "जो कुछ आपने आज्ञा की है मैं उसका पालन करूंगी, परन्तु मेरे पिता, यह तो बताओ कि तुम ऐसा क्यों कर रहे हो?

मेरी मां ने बहुत कुछ मिन्नत और आजिजी की मगर नाना साहब ने अपनी बदहवासी का सबब कुछ भी बयान न किया और बाहर चले गये। थोड़ी ही देर बाद एक लौंडी ने आकर खबर दी कि बालाजी (मेरे पिता इन्द्रदेव) आ गये। उस समय मेरी मां को नाना साहब की बातों का निश्चय हो गया और वह समझ गई कि अब इस समय यहां से रवाना हो जाना पड़ेगा।

थोड़ी ही देर बाद मेरे पिता घर में आये। मां ने उनसे उनके आने का सबब पूछा जिसके जवाब में उन्होंने कहा कि तुम्हारे पिता ने एक विश्वासी आदमी के हाथ मुझे पत्र भेजा जिसमें केवल इतना ही लिखा था कि इस पत्र को देखते ही चल पड़ो और जितनी जल्दी हो सके हमारे पास पहुंचो। मैं पत्र पढ़ते ही घबड़ा गया, उस आदमी से पूछा कि घर कुशल तो है उसने कहा कि सब कुशल है मैं बहुत तेज घोड़े पर सवार कराके तुम्हारे पास भेजा गया हूं, अब मेरा घोड़ा लौट जाने लायक नहीं है मगर तुम बहुत जल्द उनके पास जाओ मैं घबड़ाया हुआ एक तेज घोड़े पर सवार होकर उसी वक्त चल पड़ा मगर इस समय यहां पहुंचने पर उनसे ऐसा करने का सबब पूछा तो कोई भी जवाब न मिला। उन्होंने एक कागज मेरे हाथ में देकर कहा कि इसे हिफाजत से रखना। इस कागज में मैंने अपनी कुल जायदाद इन्दिरा के नाम लिख दी है। मेरी जिन्दगी का अब कोई ठिकाना नहीं। तुम इस कागज को अपने पास रक्खो और अपनी स्त्री तथा लड़की को लेकर इसी समय यहां से चले जाओ, क्योंकि अब जमानिया में बड़ा भारी उपद्रव उठा चाहता है। बस इससे ज्यादे और कुछ न कहेंगे। तुम्हारी विदाई का सब बन्दोबस्त हो चुका है, सवारी इत्यादि तैयार है।"

इतना कहकर मेरे पिता चुप हो गये और दम भर के बाद उन्होंने मेरी मां से पूछा कि इन सब बातों का सबब यदि तुम्हें कुछ मालूम हो तो कहो। मेरी मां ने भी थोड़ी देर पहिले जो कुछ हो चुका था कह सुनाया मगर कलमदान के बारे में केवल इतना ही कहा कि पिताजी यह कलमदान इन्दिरा के लिए दे गये हैं। यह कह गये हैं कि कोई इसे खोलने न पावे, जब इन्दिरा की शादी हो जाये तो वह अपने हाथ से इसे खोले।

इसके बाद मेरी पिताजी मिलने के लिए मेरी नानी के पास गये और देखा कि रोते-रोते उनकी अजीब हालत हो गई है। मेरे पिता को देखकर वह और भी रोने लगी मगर इसका सबब कुछ भी न बता सकी कि उसके मालिक को आज क्या हो गया है, वे इतने बदहवास क्यों है, और अपनी लड़की को इसी समय यहां से बिदा करने पर क्यों मजबूर हो रहे हैं, क्योंकि उस बेचारी को भी इसका कुछ मालूम न था।

यह सब बातें ऊपर जो मैं कह आई हूं सिवाय हम पाँच आदमियों के और किसी को मालूम न थी। उस घर का और कोई

चन्द्रकान्ता सन्तति भाग १४६६५