पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/६०९

यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।

कि उसके साथ लड़ने योग्य भी न रहा।

स्त्री—सो क्या?

भूत—उसने तुम्हारी तरफ इशारा करके मुझसे कहा कि 'तुम्हारी बहुत ही प्यारी चीज मेरे कब्जे में है जो तुम्हारे बाद बड़ी तकलीफ में पढ़ जायगी और जिसे तुम लामाघाटी में छोड़ आये थे' और यही सबब है कि छूटने के साथ ही सबसे पहिले मैं इस तरफ आया, मगर ईश्वर को धन्यवाद देता हूं कि तुम उस शैतान के हाथ से बची रही और तुम्हें मैं इस जगह राजी खुशी देख रहा हूँ।

स्त्री—उसकी क्या मजाल कि यहां आ सके, उसे स्वप्न में भी यहां का रास्ता मालूम नहीं हो सकता।

भूत—सो तो मैं समझता हूँ। परन्तु लामाघाटी का नाम लेने से मुझे उसकी बात पर विश्वास हो गया, मैंने सोचा कि यदि वह लामाघाटी तक न गया होता तो लामाघाटी का नाम भी उसे मालूम न होता और।

स्त्री—नहीं-नहीं, लामाघाटी का नाम किसी दूसरे सबब से उसे मालूम हुआ होगा।

भूत—बेशक ऐसा ही है, खैर तुम्हारी तरफ से तो मैं निश्चिन्त हो गया मगर अब अपनी जान बचाने के लिए मुझे असली बलभद्रसिंह का पता लगाना चाहिए।

स्त्री—अब तुम अपना खुलासा हाल उस दिन से कह जाओ जिस दिन से तुम मुझसे जुदा हुए हो।

भूतनाथ ने अपना कुल हाल अपनी स्त्री को कह सुनाया और इसके बाद थोड़ी देर तक बातचीत करके बाहर निकल आया। एक दालान में जिसमें सुन्दर बिछावन बिछा हुआ था और रोशनी बखूबी हो रही थी, उसके संगी- साथी या सिपाही सब बैठे उसके आने की राह देख थे। भूतनाथ के आते ही वे सब अदब के तौर पर उठ खड़े हुए तथा उसके बैठने के बाद उसकी आज्ञा पाकर बैठ गये और बातचीत होने लगी।

भूत—कहो तुम लोग अच्छे तो हो?

सब—जी आपके अनुग्रह से हम लोग अच्छे हैं।

भूत—ऐसा ही चाहिए।

एक—आप इतने दुबले और उदास क्यों हो रहे हैं?

भूत—मैं एक भारी आफत में फंस गया था बल्कि अभी तक फंसा ही हुआ हूं।

सब—सो क्या? सो क्या?

भूत—मैं तुमसे सब-कुछ कहता हूं क्योंकि तुम लोग मेरे खैरख्वाह हो और मुझे तुम लोगों का बहुत सहारा रहता है।

सब—हम लोग आपके ताबेदार हैं और एक अदने इशारे पर जान देने के लिए तैयार हैं, औरों की तो दूर रहे खास राजा वीरेन्द्रसिंह से भिड़ जाने की हिम्मत रखते हैं।

भूत—बेशक ऐसा ही है और इसीलिए मैं कोई बात तुम लोगों से नहीं छिपाता।

इतना कहकर भूतनाथ ने अपना हाल कहना आरम्भ किया। जो कुछ अपनी स्त्री से कह चुका था वह तथा और भी बहुत-सी बातें उसने उन लोगों से कहीं और इसके बाद कई बहादुरों को कई तरह के काम करने की आज्ञा दे फिर अपनी स्त्री के पास चला गया।

दूसरे दिन सबेरे जब भूतनाथ बाहर आया तब मालूम हुआ कि उसके बहादुर सिपाहियों में से चालीस आदमी उसकी आज्ञानुसार लामाघाटी के बाहर जा चुके हैं। भूतनाथ भी वहां से रवाना होने के लिए तैयार ही था और अपनी स्त्री से विदा होकर बाहर निकला था, अस्तु वह भी एक आदमी को लेकर चल पड़ा और दो ही घण्टे बाद लामाघाटी के बाहर मैदान में जमानिया की तरफ जाता हुआ दिखाई देने लगा।

छठवाँ बयान

जो कुछ हम ऊपर लिख आये हैं उसके कई दिन बाद जमानिया में दोपहर दिन के समय जब राजा गोपालसिंह भोजन इत्यादि से छुट्टी पाकर अपने कमरे में चारपाई पर लेटे हुए एक-एक करके बहुस-सी चीठियों को पढ़ कर कुछ सोच रहे थे उसी समय चोबदार ने भूतनाथ के आने की इत्तिला की। गोपालसिंह ने भूतनाथ को अपने सामने हाजिर करने की आज्ञा दी। भूतनाथ हाजिर हुआ और सलाम करके चुपचाप खड़ा हो गया। उस समय वहां पर इन दोनों के सिवाय और कोई न था।

गोपाल—कहो भूतनाथ! अच्छे तो हो, इतने दिनों तक कहां थे और क्या करते थे?

भूत—आपसे बिदा होकर मैं बड़ी मुसीबत में पड़ गया।

गोपाल—सो क्या!

भूत—कमलिनीजी के मकान की बर्बादी का हाल तो आपको मालूम हुआ ही होगा।

चन्द्रकान्ता सन्तति भाग १३६०१