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पांचवां बयान

सन्तति के छठवें भाग के पांचवें बयान में हम लिख आए हैं कि कमलिनी ने जब कमला को मायारानी की कैद से छुड़ाया तो उसे ताकीद कर दी कि तू सीधे रोहतासगढ़ चली जा और किशोरी की खोज में इधर-उधर घूमना छोड़कर बराबर उसी किले में बैठी रह। कमला ने यह बात स्वीकार कर ली और वीरेन्द्रसिंह के चुनारगढ़ चले जाने के बाद भी कमला ने रोहतासगढ़ को नहीं छोड़ा, ईश्वर पर भरोसा करके उसी किले में बैठी रही।

यद्यपि उस किले का जनाना हिस्सा बिल्कुल सूना हो गया था, मगर जब से कमला ने उसमें अपना डेरा जमाया, तब से बीस-पच्चीस औरतें जो कमला की खातिर के लिए राजा वीरेन्द्रसिंह की आज्ञानुसार लौंड़ियों के तौर पर रख दी गई थीं, वहां दिखाई देने लगी थीं। जब राजा वीरेन्द्रसिंह यहां से चुनारगढ़ की तरफ रवाना होने लगे, तब उन्होंने भी कमला को ताकीद कर दी कि तू अपनी ऐयारी को काम में लाने के लिए इधर-उधर दौड़ना छोड़ के बराबर इसी किले में बैठी रहियो और यदि चारों तरफ की खबर लिए बिना तेरा जी न माने तो हमारे जासूसों को जो ज्योतिषिजी के मातहत में हैं, जहां जी चाहे भेजा कीजियो। इसी तरह ज्योतिषीजी को भी ताकीद कर दी थी कि कमला की खातिरदारी में किसी तरह की कमी न होने पाये तथा यह जिस समय जो कुछ चाहे उसका इन्तजाम कर दिया करना इसमें भी कोई शक नहीं कि पंडित जगन्नाथ ज्योतिषी ने कमला की बड़ी खातिर की। कमला बड़े आराम से यहां रहने लगी और जासूसों के जरिये से जहां तक हो सकता था, चारों तरफ की खबर भी लेती रही।

आज बहुत दिनों के बाद कमला के चेहरे पर हंसी दिखाई दे रही है। आज वह बहुत खुश है, बल्कि यो कहना चाहिए कि आज उसकी खुशी का अन्दाजा करना बहुत ही कठिन है, क्योंकि पंडित जगन्नाथ ज्योतिषी ने तेजसिंह के हाथ की लिखी चीठी कमला के हाथ में दी और जब कमला ने उसे खोलकर पढ़ा तो यह लिखा हुआ पाया—

मेरे प्यारे दोस्त ज्योतिषीजी,

आज हमलोगों के लिए बड़ी खुशी का दिन है, इसलिए कि हम ऐयार लोग किशोरी, कामिनी, कमलिनी, लाडिली और तारा को एक साथ लिए हुए रोहतासगढ़ की तरफ आ रहे हैं, अस्तु जहां तक हो सके पालकियों और सवारियों के अतिरिक्त कुछ फौजी सवारों को भी साथ लेकर तुम स्वयं 'डहना' पहाड़ के नीचे हम लोगों से मिलो।

तुम्हारा दोस्त–
तेजसिंह।

इस चीठी के पढ़ते ही कमला हद से ज्यादा खुश हो गई और उसकी आंखों से गर्म-गर्म आंसुओं की बूंदे गिरने लगी, गला भर आया और कुछ देर तक बोलने या कुछ पूछने की सामर्थ्य न रही। इसके बाद अपने को सम्हाल के उसने कहा—

कमला—यह चीठी आपको कब मिली? आप अभी तक गए क्यों नहीं?

ज्योतिषी—यह चीठी मुझे अभी मिली है। मैं तेजसिंहजी के लिखे बमूजिव इन्तजाम करने का हुक्म देकर तुम्हारे पास खबर करने के लिए आया हूं और अभी चला आऊंगा।

कमला—आपने बहुत अच्छा किया, मैं भी उनसे मिलने के लिए ऐसे समय अवश्य चलूंगी, मगर मेरे लिए भी पालकी का बन्दोबस्त कर दीजिए, क्योंकि ऐसे समय में दूसरे ढंग पर वहां जाने से मालिक की इज्जत में बट्टा लगेगा।

ज्योतिषी—बेशक ऐसा ही है, पहले ही से सोच चुका था कि तुम हमारे साथ चले बिना न रहोगी, इसलिए तुम्हारे वास्ते भी इन्तजाम कर चुका हूँ, पालकी ड्योढी पर आ चुकी होगी, बस तैयार हो जाओ, देर मत करो।

कमला झटपट तैयार हो गई और ज्योतिषीजी ने भी तेजसिंह के लिखे बमूजिब सब तैयारी बात की बात में कर ली। घण्टे ही भर बाद रोहतासगढ़ पहाड़ के नीचे पांच सौ सवार चांदी सोने के काम की पालकियों को बीच में लिए हुए 'डहना' पहाड़ी की तरफ जाते हुए दिखाई दिए और पहर भर के बाद वहां जा पहुंचे, जहां तेजसिंह, किशोरी इत्यादि को एक गुफा के अन्दर बैठाकर ऐयारों तथा बलभद्रसिंह को साथ लिए ज्योतिषी का इन्तजार कर रहे थे। तेजसिंह तथा ऐयार लोग खुशी-खुशी ज्योतिषीजी से मिलें। कमला की पालकी उस गुफा के पास पहुंचाई गई जिसमें किशोरी और कमलिनी इत्यादि थी और कहार सब वहां से अलग कर दिए गए।

वह गुफा जिसमें कमलिनी और किशोरी इत्यादि थीं ऐसी तंग न थी कि उनको किसी तरह की तकलीफ होती, बल्कि वह एक आड़ की जगह में और बहुत ही लम्बी-चौड़ी थी और उसमें चांदना भी बखूबी पहुँचता था। तारासिंह की जुबानी जब किशोरी ने यह सुना कि कमला भी आई है तो उससे मिलने के लिए बेचैन हो गई और जब तक वह पालकी के अन्दर से

चन्द्रकान्ता सन्तति भाग १२५७१