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आजकल इस मकान में कमलिनी की प्यारी सखी तारा रहती है। नौकर मजदूरनी प्यादे सिपाही सब उसी के आधीन हैं। क्योंकि वे लोग इस बात को बखूबी जानते हैं कि कमलिनी तारा को अपनी सगी बहिन से बढ़ कर मानती है और तारा के कहे को टालना कदापि पसन्द नहीं करती। कमलिनी के कहे अनुसार तारा कुछ दिनों तक कमलिनी ही की सूरत बनाकर उस मकान में रही और इस बीच में वहां के नौकर-चाकरों को इसकी गुमान भी न हुआ कि कमलिनी कहीं बाहर गई है और यह तारा है बल्कि उन लोगों का यही विश्वास था कि तारा को कमलिनी ने किसी काम के लिए भेजा है, मगर उस दिन से जब से कमलिनी ने मनोरमा को गिरफ्तार किया था और अपने तिलिस्मी मकान में भिजवा दिया था, तारा अपनी असली सूरत में ही रहती है और समय समय पर कमलिनी के हाल-चाल की खबर भी उसे मिला करती है।

देवीसिंह और भूतनाथ को साथ लिए हुए राजा गोपालसिंह ने जब किशोरी और कामिनी को कैद से छुड़ाया था तो उन दोनों को भी कमलिनी की इच्छानुसार इसी तिलिस्मी मकान में पहुंचा दिया था। पहुंचाते समय देवीसिंह और भूतनाथ को साथ लिए हुए स्वयं राजा गोपालसिंह किशोरी तथा कामिनी के संग आये थे। उस समय का थोड़ा-सा हाल यहां लिखना उचित जान पड़ता है।

किशोरी और कामिनी को लिए हुए जब राजा गोपालसिंह उस मकान के पास पहुंचे तो खबर करने के लिए भूतनाथ को तारा के पास भेजा। उस समय तारा किसी काम के लिए तालाब के बाहर आई हुई थी जब उसकी भूतनाथ से मुलाकात हुई। भूतनाथ को देखकर तारा खुश हुई और उससे कमलिनी का समामार पूछा जिसके जवाब में भूतनाथ ने उस दिन से जिस दिन कमलिनी तारा से आखिरी मर्तबे जुदा हुई थी आज तक का हाल कह सुनाया जिसमें राजा गोपालसिंह का भी हाल था और अन्त में यह भी कहा कि "किशोरी और कामिनी का कैद से छुड़ाकर कमलिनी की इच्छानुसार उन दोनों को यहाँ पहुंचा देने के लिए स्वयं राजा गोपालसिंह आये हैं, थोड़ी दूर पर हैं, और तुमसे मिलना चाहते हैं।

तारा को इसका गुमान भी न था कि राजा गोपालसिंह अभी तक जीते हैं या मायारानी के कैदखाने में हैं। आज भूतनाथ की जुबानी यह हाल सुनकर खुशी के मारे तारा की अजब हालत हो गई। भूतनाथ ने उसके चेहरे की तरफ देख कर गौर किया तो मालूम हुआ कि राजा गोपालसिंह के छूटने की खुशी बनिस्बत कमलिनी के तारा को बहुत ज्यादा हुई, बल्कि वह सोचने लगा कि ताज्जुब नहीं कि खुशी के मारे तारा की जान निकल जाय, और वास्तव में यही यात थी भी। तारा के खूबसूरत भोले चेहरे पर हंसी तो साफ दिखाई दे रही थी, मगर साथ ही हंसी के गला फंस जाने के कारण उसकी आवाज रुक-सी गई थी, वह भूतनाथ से कुछ कहना चाहती थी, मगर कह नहीं सकती थी। आंखों से आंसुओं की बूंदे गिर रही थीं और बदन में पल-पल भर में हलकी कंपकंपी हो रही थी।

जब भूतनाथ ने तारा की यह हालत देखी तो उसे बड़ा ही ताज्जुब हुआ, मगर यह सोचकर उसने अपने ताज्जुब को दूर किया कि अक्सर ऐसा भी हुआ करता कि अगर घर के स्वामी पर आई हुई कोई बला टल जाती है तो बनिस्बत सगे रिश्तेदार के ताबेदारों को विशेष खुशी होती है। मगर इतना सोचने पर भी भूतनाथ की यह इच्छा हुई कि तारा की इस बढ़ी हुई खुशी को किसी तरह कम कर देना चाहिए, नहीं तो ताज्जुब नहीं कि इसे किसी तरह का शारीरिक कष्ट उठाना पड़े। इसी विचार से भूतनाथ ने तारा की तरफ देख के कहा—

भूतनाथ—राजा गोपालसिंह छूट गये सही, मगर अभी उनकी जिंदगी का भरोसा न करना चाहिये।

तारा—(चौंककर) सो क्यों सो क्यों?

भूत—यह बात मैं इस विचार से कहता हूँ कि मायारानी कुछ न कुछ बखेड़ा जरूर मचावेगी और इसके अतिरिक्त तमाम रिआया को राजा गोपालसिंह के मरन का विश्वास हो चुका है, जिस कई वर्ष बीत चुके हैं, अब देखना चाहिए उन लोगों के दिल में क्या बात पैदा होती है। खैर, जो होगा देखा जाएगा, अब तुम बिलम्ब न करो, वे राह देख रहे होंगे।

भूतनाथ की बातों का जवाब देने का तारा को मौका न मिला और वह बिना कुछ कहे भूतनाथ के साथ रवाना हुई। राजा गोपालसिंह बहुत दूर न थे। इसलिए आधी घड़ी से कम ही देर में तारा वहां पहुंच गई और उसने अपनी आँखों से गोपालसिंह, किशोरी, कामिनी और देवीसिंह को देखा। तारा के दिल में खुशी का दरिया जोश के साथ लहरें ले रहा था। नि:सन्देह उसके दिल में इतनी ज्यादा खुशी थी कि उसके समाने की जगह अन्दर न थी और बहुतायत के कारण रोमांच द्वारा तारा के एक-एक रोंगटे से खुशी बाहर हो रही थी। तारा के दिल में तरह-तरह के ख्याल पैदा हो रहे थे और वह अपने को बहुत सम्हाल रही थी। तिस पर भी राजा गोपालसिंह के पास पहुंचते ही वह उनके कदमों पर गिर पड़ी।

गोपाल—(तारा को जल्दी से उठा कर) तारा, मैं जानता हूँ कि तुम्हे मेरे छूटने की हद से ज्यादा खुशी हुई है मैं तुमसे बहुत प्रसन्न हूँ खास कर इस सबब से कि तुमने कमलिनी का साथ बड़ी नेकनीयती और मुहब्बत के साथ दिया और कमलिनी के ही सबब से मेरी जान बची, नहीं तो मैं मर ही चुका था बल्कि यों कहना चाहिए कि मुझे मरे हुए पाँच वर्ष बीत

देवकीनन्दन खत्री समग्र५००