पृष्ठ:दुर्गेशनन्दिनी प्रथम भाग.djvu/६२

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का ओर चले, किश्चित काल पर्य्यन्त तो चुप रहे, फिर राजकुमार ने कहा बिमला मुझको एक सन्देह है कि तू परिचारिका नहीं है।

बिमला मुस्किरा कर कहने लगी "यह संदेह आपको क्यों हुआ?"

रा०| बीरेन्द्रसिंह की कन्या का विवाह राजा के पुत्र से न हो, इसमें कोई विशेष कारण है और तू यदि परिचारिका होती तो यह बात कदापि तुझको न मालूम होती।

विमला ने ठंढी सांस ली और कातरस्वर से बोली "आपका संदेह यथार्थ है मैं परिचारिका नहीं हूं, अदिष्ट बस यही काम करती हूं।"

राजकुमार ने देखा कि बिमला का मन रोआसा हो आया अतएव फिर उस विषय सम्बन्धी और कुछ न कहा। किन्तु विमला ने स्वतः कहा "युवराज मैं आपको बताऊंगी पर इस समय नहीं, देखो पीछे किसी के आने का शब्द सुनाई देता है, ऐसा जान पड़ता है कि दो मनुष्य परस्पर फुसकुसाय रहे हैं।"

राजकुमार ने कहा "मुझको भी सन्देह होता है, ठहरो मैं देख आऊं" और पीछे हटकर इधर उधर मार्ग के पार्श्वों में देखा तो मनुष्य का कहीं नहीं चिन्ह देख पड़ा। फिर आकर बिमला से बोले "मुझको शंका है कि कोई हमारे पीछे आता है, धीरे २ बात करो"। और दोनों धीरे २ बात करते हुए चले और थोड़ी देर में मान्दारणगढ़ में पंहुच कर दुर्ग के सामने आन खड़े हुए। राजपुत्र ने पूछा, "तू इस समय दुर्ग में कैसे जायगी? इतनी रात को फाटक तो बन्द होगा।"