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दुर्गेशनन्दिनी



आशीर्वाद है कि ईश्वर तुम्हारा अहिषात अचल करे।'

तिलोत्तमा ने कहा ' अब कब तुमसे भेंट होगी?'

आयेशा ने कहा 'मिलने का क्या भरोसा है।'

तिलोत्तमा उदास होगई और दोनों चुप रह गई।

थोड़ी देर के पीछे आयेशा ने कहा 'भेट हो या न हो किन्तु हमको भूल न जाना।

तिलोत्तमा ने हंसकर कहा 'यदि मैं आयेशा को मल जाऊंगी तो राजकुमार मेरा मुंह नहीं देखेंगे।'

आयेशा ने गम्भीर भाव धारण करके कहा 'मैं इस बात से सन्तुष्ट नहीं हुई, तुम कभी मेरी शत युवराज से न कहना। कहोगा।'

आयेशा ने सोचा था कि जगतर्सिद के लिये जो मैंने इस जन्म का सुख परित्याग किया, यह बात उनके हृदय में कांटेसी कसकती होगी। उसके नामही लेने से उनको पीड़ा होगी।

तिलोत्तमा ने अंगीकार किया । आयेशा ने कहा " मुझको भूलना मत और लो यह एक स्मारक चिन्ह देती हूँ इसको यत्न से रखना।"

यह कहकर आयेशाने लौंडी को बुलाकर कहा और उसने एक हाथी दांत का डब्बा रत्नालंकार से भरा लाफर आगे धर दिया, जब बाहर चली गयी आयेशा ने वह सब गहना अपने हाथ से तिलोत्तमा को पहिनाया।

यद्यपि तिलोत्तमा राजा की बेटी थी तथापि उन अलंकारों की बनत और उत्तम २ नग देखकर उसको बड़ा आश्चर्य हुआ और उन्ही की ओर तीव्र दृष्टि से देखती रही। आयेशा ने अपने पिता का दिया हुमा सब भूषण तोड़वा कर यह अलंकार तिलोत्तमा कोलिये बनवाया था।‌‌‍‌‌‌‌‌‌‌