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जहांगीरनामा।

हरनकी कबर पर लेख।

बादशाहने शनिवारको उस बागसे रवाना होकर गांव हरहरपुरमें और मंगल को जहांगीरपुर में डेरा किया। बादशाह के शिकार खेलने के जो स्थान थे उनमें से एक यह गांव भी था। इसकी सीमा में बादशाह के एक प्यारे हरन हंसराज नामक की समाधि पर स्मारकस्तम्भ बनाया गया था जिस पर यह लिखा था--"इस सुरम्य बन से एक हरन नूरुद्दीन जहांगीर बादशाह के जाल में फंसा और एक महीने में पशुपन छोड़कर सब खासेके हरनोंका सरदार हुआ।" बादशाह ने उस हरनके सद्गुणोंसे जो पाले हुए हरनों से लड़ने और जङ्गली हरनोंके शिकार करने में अद्वितीय था यह हुक्म दिया कि कोई इस जंगल के हरनों को बध न करे और उनके मांसको हिन्दू मुसलमान गाय और सूअर के समान अपवित्र समझें। उसके कबरके पत्थर को हरनके आकारमें बनादे। सिकन्दर मुईनको जो उस परगनेका जागीरदार था जहांगीरपुरमें किला बनाने का हुक्म दिया।

गुजरात।

१४ गुरुवार (चैत्र सुदी १५) को बादशाह जण्डाले(१) में और १६ शनिवार को हाफिजाबाद में ठहरा। वहां के करोरी मीर कवा- मुद्दीनने वहां एक मकान बनाया था उसी में निवास किया। वहां से दो कूचमें चिनाब नदी पर पहुंचे। वहां जो पुल बांधा गया था २१ गुरुवारको उसके ऊपर से पार होकर बादशाह गुजरातमें पहुँच गया।

गुजरात नामकी उत्पत्ति।

अकबर बादशाहने कशमीर जाते हुए एक किला चिनाबके तट पर बनाया और गूजरों को जो इस प्रान्तमें चोरी धाड़ा किया


(१) जण्डयाला।