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जहांगीर बादशाह सं० १६६२ ।

बापकी सेवामें थे जहांगीरने उन सबको उन्हीं कामों पर से बहने दिया।

४ रज्जब अगहन सुदी ६ को शरोफखां जो बादशाहके भरोसे का आदमी था और जिसको तुमन और तोग मिला हुआ था विहारके सूबेसे आकर उपस्थित हुआ। बादशाहने प्रसन्न होकर उस को वकील और बड़े वजीरका उच्च पद अमौकलउमराकी पदवी और पांच हजार सवारका मनसब दिया। इसका बाप ख्वाजा अबदुस्ममद बहत अच्छा चित्रकार था और हुमायूं बादशाहको पाम प्रतिष्ठापूर्वक रहता था जिससे अकबर बादशाह भी उसका बहुत मान रखता था।

घंगालेको सूवेदारी राजा मानसिंहके पासही बनी रही। बादशाह लिखता है--"उसे इस बातका जरा गुमान न था कि मैं उसके साथ ऐसा उदार बरताव करूंगा। मैंने उसको चारकुब्बकका सिरोपाव जड़ाऊ तलवार खासा घोड़ा देकर उस देशको बिदा किया जो ५० हजार सवारोंके रहने की जगह है। उसका बाप अगवान दास(१) और दादा भारमल था। भारमल उन कछवाहे राजपूतों में पहला पुरुष था जो मेरे बापको सेवामें आकर रहे थे। सचाई राजभति और वीरतामें अपनी जाति वालोंसे बढ़कर था।

उदयपुर पर चढ़ाई।

जहांगीर लिखता है--

राज्यतिलकके पीछे सब अमीर अपनी अपनी सेना सहित दरबारमें उपस्थित थे। मैंने सोचा कि यह सेना अपने पुत्र परवेज के साथ देकर रानासे लड़ने भेजूं। वह हिन्दुस्थानके दुष्टों और कई काफिरोंमेंसे है। पिताके समय भी कई बार उसपर सेनाएं भेजी गई पर उसका पाप नहीं कटा। मैंने शुभमुहर्त्तमें पत्न परवेजको भारी खिलअत जड़ाऊ परतला जड़ाऊ पेटी मोतियोंकी माला जो कीमती रत्नोंकी बनी ७२ हजारको थौ अरबो एराकी घोड़े और


(१) भगवन्तदास।