पृष्ठ:जहाँगीरनामा.djvu/३१२

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जहांगीरनामा।

२७६ - जहाँगीरनामा । का मनसब कुछ बढ़कर डेढ़ हजारो जात और सात सौ संवारोंका होगया। खंभातसे प्रयाण। .. .:. बादशाह समुद्र और ज्वार भाटा देखनको १० दिन खंभातमें रहा और वहांके रहने वाले व्यापारियों, कारीगरों और पालने योग्य प्रजाको खिलात, घोड़े, खर्च और जीविका देकर १८ (पौष सुदी १४) मङ्गलके दिन अहमदाबादको गया। - अरबी मछली। बादशाह लिखता है-“उत्तम जातिको मछली खम्भातमें अरबी नामका है जिसको मकवे अनेक बार पकड़कर मेरे वास्ते लाये। वह स्वाद भी बहुत होती है पर रोइको नहीं पहुंचती। बाजरकी खिचड़ी। गुजरातवालोंके निज भोजनों में से बाजरेकी खिचड़ी है जिसको लजीजा भी कहते हैं। बाजरा मोटा अनाज है। हिन्दुस्थानके सिवा दूसरी विलायतमें नहीं होता। हिन्दुस्थानके सब प्रान्तोंसे अधिक गुजरात में होता है और सब अनाजोंमे सस्ता रहता है। बाजरेको खि बड़ी मैंने कभी नहीं खाई थौ अब हुक्म दिया तो पका कर लाये। बैखाद नहीं थी मुझे तो अच्छी लगी। मैंने कह दिया कि सूफियानापा दिनों में जबकि पशु संवंधो भोजन छोड़े हुए हों और बिना मांसके खाना खाता हूं तब यह खिचड़ी विशेष करके 'लाया करें।" बादशाह मङ्गलको ६। कोस चलकर कोसालेमें और बुधको परगने बाबरेमें होकर समुद्रके किनारे उतरा। यह मंजिल भी ६ कोसको थी। गुरुवारको वहीं रहकर प्यालेको सभा खज़ाई ____पा मुसलमानोंके भक्त सूफी कहलाते हैं वह जब कोई अनुष्ठान करते हैं तो मांस क्या घी, दूध और दही तक नहीं खाते हैं इसको भी एक प्रकारको पशुहिंसा समझते हैं।।