पृष्ठ:जहाँगीरनामा.djvu/२९१

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संवत्१६७४।

नंवत् १६७४। २७५ ....... ३पमा लाल और दो मोतियोंको पहुंची। जवाहिरातना रक बड़ाज घोड़ा। जैतपुरले जीत। निदाईखांकी अर्जी पहुंची कि जैतपुरका जमींदार बादशाही कोजको सामने न ठहर सका माग गया। उसकी विलायत लुट गई। अब वह अपने कियेको पछताकर सेवाम उपस्थित हुआ चाहता है। रूहुलह उसके पीछे गया है। या तो उसको पकड़ कर दरगाहमें ले ग्रावेगा या नष्ट करदेगा। उसको त्रियां जो पड़ौलको जनींदारोंके यहां चली गई थीं पकड़ी जाचुकी हैं। मोखा बन्दरके अनार । ८ (आश्विन गुदी १) को खाजा निजाम १४ अनार मोखाबंदर के लाया जो चौदह दिनमें सूरत पहुंचे थे और आठ दिनमें वहांसे मांडोंमें आये थे। बादशाह लिखता है-"यह अनार ठट्टे के अनारों में बड़े हैं ठट्टे के अनारों में गुठली नहीं होती इनमें है। कोमल हैं रस उठेके अनारोंसे अधिक है।" जैतपुर। ८ (आश्विन मुदौ २) को समाचार मिला कि राहुलह एक गाँव में पहुंचकार और यह सुनकर कि जैतपुरवालोंको त्रियां और कुछ संबंधी यहां हैं वहां ठहर गया और गांव वालोंको बुलाया। वह हथियार खोलकर कुछ लोगों सहित एक गलीचे पर बैठा था कि एक घातकने उसके पीछे आकर बरछा मारा जो उसकी छातीके पार होगया। बरछेके खेंचतेही रूहुलहको रूह भी खिंच गई जो लोग वहां थे उन्होंने उस घातकको भी मार डाला। फिर सब हथियार बांधकर उस गांवमें गये ओर शत्रुओंको रखने के अपराधमें सबको घड़ी भरमें काट छांटकर स्त्रियों तथा चड़कियोंको पकड़ लाये। गांवमें आग लगादी जिससे राखको ढेरीके सिवा और कुछ न रहा। फिर रूहुलहको लाश लेकर फिदाईखांके पास आये। रूहुल्लहको वीरतामें तो कुछ कसर न थी पर गफलतसे मारा गया।