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जहांगीरनामा।

मारने चलें चाहे जो हो । उसका यह मनोरथ न था कि राजाको कुछ हानि पहुंचे। उधर राजा भी इस घटनासे अज्ञात था। किशन-सिंह बड़े तड़केही अपने भतीजे कर्ण और दूसरे साथियोंको लेकर चला जब राजाको हवेलीके दरवाजे पर पहुंचा तो अपने कई अनुचरोंको घोड़ोंसे उतारकर गोयन्दासके घर भेजा। जो राजाके घरके पास था। वह अाप बैसाही घोड़े पर चढ़ा हुआ ड्योढ़ीमें खड़ा रहा। वह प्यादे गोयन्दासके घर में घुसकर पहरेवालों पर तलवार चलाने लगे। गोयन्दास इस मारा मारीसे जाग उठा और तलवार लेकर.,घबनाया हुआ घरके एक कोनेसे बाहर निकला। प्यादे जब उन पहरेवालोंको मार चुके तो गोयन्दासको ढूंढ़ने लगे। सामने पाकर उसका काम पूरा कर दिया। किशनसिंह गोयन्दासके मारे जानेका निश्चय होनेके पहले ही घबराहटमें घोड़ेसे उतरकर हवेलीके भीतर गया। उसके साथियोंने बहुतेरा कहा कि इस समय पैदल होना ठीक नहीं है परन्तु उसने कुछ नहीं सुना। यदि कुछ देर ठहरता और शत्रुके मारे जाने के समाचार पहुंच जाते तो सन्भव था कि वैसाही घोड़े पर सवार अपना काम करके कुशलपूर्वक लौट जाता परन्तु भाग्यमें कुछ औरही लिखा था। उसके पैदल होकर अन्दर जातेही राजा जो अपने महल में था बाहरवालोंके कोलाहलसे जांग गया और नंगी तलवार हाथ में लेकर अपने घरके दरवाजे पर आया। लोग हर तरफसे सावधान होकर उन पैदलोंके ऊपर दौड़े। पैदल थोडेसे थे और राजाके आदमियोंको कुछ गिनती न थी। किशनसिंहके एक एक आदमी के सम्मुख दस दस आगये। जब कर्ण और किशनसिंह राजाके घर पहुंचे तो उसके आदमियोंने उनको घेरकर मार डाला। किशनसिंहके ७ और कर्णसिंहले घाव लगे थे । इस बखेड़ेमें ६६ आदमी दोनों पक्षके मारे गये। राजाको तीस और किशनसिंह के छत्तीस मरे। जब दिन निकला तो इस झगड़े


पुष्कर।