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संवत् १६७१ ।

होगया। पांचवें दिन एतमादुद्दौलाको नकारा और झण्डा मिला साथही नकारा बजानेकी आज्ञा होगई।

असिफखांका मनसब बढ़कर चार हजारी जात और दो हजार सवारोंका होगया ।

राजा वरसिंहदेवके सात सौ सवार बढ़े और घर जानेकी छुट्टी नियत समय पर उपस्थित होजानेके इकरार पर मिलो।

उसी दिन इब्राहीमखांकी भेट हुई।

किशनचन्दको जो नगरकोटके राजोंकी सन्तानमें था राजाकी पदवी दी गई।

छठे दिन गुरुवारको एतमादुद्दौलाकी भेट नूरचशमेमें हुई । बादशाहने एक लाख रुपयेके जवाहिर और जड़ाऊ पदार्थ लेकर शेष उसके वास्ते छोड़ दिये। इस दिन बड़ा उत्सव हुआ था।

सातवें दिन किशनसिंहका मनसब हजारी जात बढ़कर तीन हजारी जात और डेढ़ हजार सवारका होगया। इसी दिन नूर चश्मेकी तलहटीमें एक सिंह शिकार हुआ।

आठवें दिन (चैत्र बदी १४) को बादशाहने कर्णको पांचहजारी जात और पांच हजार सवारोंका मनसब देकर हीरों और मोतियों की एक छोटी माला दी जिसमें मोतियोंकी सुमरनी लगी थी।

राजा श्यामसिंहका मनसब पांच सदी जातके बढ़नेसे अढ़ाई हजारी जात और चौदहसौ सवारोंका होगया।

सूर्यग्रहण ।

दसवें दिन (चैत्र बदी ३०) रविवारको १२ घड़ी दिन बीतने पर पश्चिमसे सूर्य ग्रहण लगा। पांच भागमेंसे चार भागका ग्रास हुआ। आठघड़ीमें मोक्ष हुआ। बादशाहने नाना प्रकारके दान दिये।

इसी दिन राजा सूरजसिंहकी भेट हुई। उसमेंसे जो माल बादशाहने लिया वह तेतालिस हजार रुपयेका था।

चौदह हजार रुपयेकी भेट कन्धारके हाकिम बहादुरखांकी भी पहुंची।