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संवत् १.६७१ ।

बन्द होगई क्योंकि वह दरबार में तो आता था परन्तु उदास रहा करता था।

मिरजा रुस्तम।

मिरजा रुस्तम(१) सफवीके अन्यायसे ठडे की प्रजाने पुकार को। बादशाहने उसे बुलाया वह २६ उर्दीबहिश्त (प्रथम जेठ सुदी. ७) को आया तो वह अनौराय सिंहदलनको सौंप दिया गया कि निर्णय होने तक कुछ दुःख पावे और दूसरे लोग भी सहम जावें।

अहदादको हार।

मोतकिदखां पोलमको घाटीमें जो परशावरके पास है और . खानदौरां कावुलके पास अहदादका रास्ता रोके हुए थे। इतने में अहदाद बहुतसे सवारों और पैदलोंके साथ : जलालाबादसे आठ कोस कोटतिराहमें आकर ठहरा और वहांके जो लोग अधीन होगये धे उनमें से कुछको मार और कुछको पकड़कर जलालाबाद और येशबुलागके ऊपर आनेका विचार करने लगा।

मोतकिदखाने यह सुनकर.६ फरवरदीन (बैसाख बदी १) बुध- वारको उमपर चढ़ाई की। वह खानदौरांके सिवा और किसी सेना के उम प्रान्तमें विद्यमान होने की सूचना न होनेसे निश्चिन्त बैठा था, तो भी खूब लड़ा। अन्तको बन्दूकोंकी मारसे घबराकर भाग निकला। मोतकिदखाने तीन चार कोस तक पीछा करके उसके पन्द्रह मी आदमी मारी। शेष हथियार डालकर भाग गये। मोत. किदखा रातको तो रणभूमिमें रहा और तड़के छः सौ. सिर पठानों के लेकर परशावरमें आया और वहां उनका बबर(२) कोट बन. वाया। पांचमी गाय बैल बकरी घोड़े और बहुतसा धन मालं


(१) यह ईरानके शाह तुहमास्य, सफवोके भतीजे सुलतान हुसैन मिरजाका बेटा था इमका बाप कन्धार और, ज़मीनदावरका हाकिम था मगर तूरानके बादशाह अबदुल्लहखां उजबकके डरसे अपना मुल्क अकबर बादशाहको देकर हिन्दुस्थानमें आगया था।

(२) बैरियोंके सस्तकोंका स्तम्भ।