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जहांगीरनामा।

इनका राज्य था और राजा कहलाते थे फिर दक्षिणको चले गये और वहांको अधिक भूमिको जीतकर राजाके बदले रावल कहलाने लगे। वहांसे मेवात(१)के पहाड़ोंमें आये और होते होते चित्तौड़गढ़के मालिक होगये। उस दिनसे आजतक (आठवां साल मेरे राज्य पर बैठनेका है) १४७१ वर्ष होते हैं। इस वंशके २६ पुरुष जिनका राज्य १०१० वर्ष रहा रावल कहलाते रहे। रावल(२) से जो पहिला पुरुष इस पदवीका हुआ है राना अमरसिंह तक जो आज राना है--२६ राना ४६१ वर्षमें हुए हैं और इतने लम्बे समयमें हिन्दुस्थानके किसी बादशाहके आगे नहीं झुके हैं, बल्कि बहुधा सिर उठाते और सामना करते रहे हैं वाबर बादशाहके समय में राणा सांगाने इस देशके सब राजा राव और जमीन्दारोंको एकत्र करके एक लाख अस्सी हजार सवारों और कई लाख पैदलों से वयानेके पास मैदानकी लड़ाई कीथी। ईश्वरकी कृपा और भाग्य के बलसे मुसलमानोंकी काफिरों पर जीत हुई जिसका वृत्तान्त तवारीखके विश्वासौ ग्रन्थों और विशेष करके बाबर बादशाहके वाकेआतमें जो उन्हींके लिखे हुए हैं सविस्तर लिखा है। मेरे पूज्य पिताने इन दंगई लोगोंके दबानेमें पूरा परिश्रम किया और कई बार इनके ऊपर सेना भेजी अपने राज्यशासनके बारहवें वर्ष में आप चित्तौड़गढ़ जीतनेको गये जो दुनियाभर के सुदृढ़ दुर्गेमेंसे है और ४ महीने एक दिन तक उसको घेरे रहे। फिर उसको राणा अमर- सिंहके पिता(३) के मनुष्योंसे बल पूर्वक छीनकर और नष्टभ्रष्ट करके चले आये। जब जब बादशाही फौजें उसको(४) घेरकर ऐसा कर देती थीं कि या तो पकड़ा जाय या मारा जाय तबही कोई ऐसी बात होजाती थी कि जिससे यह श्रम सफल नहीं होने पाता था। निदान अपने राज्यके पिछले समयमें आप तो


(१) मेवाड़ चाहिये। (२) महाराना चाहिये।

(३) पिता नहीं दादा।

(४) राणा प्रतापसिंह अमरसिंहके पिताको।